त्योहार Archives - Learn With Vikas https://learnwithvikas.com/category/entertainment/festival/ Hindi Blog Website Thu, 12 Jan 2023 17:13:45 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.2 https://i0.wp.com/learnwithvikas.com/wp-content/uploads/2022/09/cropped-android-chrome-512x512-1.png?fit=32%2C32&ssl=1 त्योहार Archives - Learn With Vikas https://learnwithvikas.com/category/entertainment/festival/ 32 32 208426820 धनतेरस में धन के नुकसान से बचने के लिए इन बातो का खास ध्यान रखे (To avoid the loss of money in Dhanteras, take special care of these things) https://learnwithvikas.com/%e0%a4%a7%e0%a4%a8%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%b8/ https://learnwithvikas.com/%e0%a4%a7%e0%a4%a8%e0%a4%a4%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%b8/#respond Thu, 20 Oct 2022 12:10:43 +0000 https://learnwithvikas.com/?p=943 भारत सरकार द्वारा धनतेरस पर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा। कहा जाता है कि धनतेरस शुभ मुहूर्त के दिन पर सोना, चांदी और बर्तन खरीदने से पूरे साल भाग्य का साथ मिलता है। दिवाली के त्योहार की शुरुआत धनतेरस के उत्सव से होती है। इसके बाद छोटी दिवाली, बड़ी दीवाली, गोवर्धन पूजा और अंत में […]

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भारत सरकार द्वारा धनतेरस पर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा।

कहा जाता है कि धनतेरस शुभ मुहूर्त के दिन पर सोना, चांदी और बर्तन खरीदने से पूरे साल भाग्य का साथ मिलता है।

दिवाली के त्योहार की शुरुआत धनतेरस के उत्सव से होती है।

इसके बाद छोटी दिवाली, बड़ी दीवाली, गोवर्धन पूजा और अंत में भाई दूज आता है।

धनतेरस शुभ मुहूर्त के दिन, लोग भगवान धन्वंतरि, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा करते हैं।

लंबे समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार धनतेरस के दौरान आभूषण, चांदी के बर्तन और सोना खरीदना बेहद शुभ माना  जाता है ।

आइए अब इस बलॉग में जानें कि धनतेरस कब है औरधनतेरस का क्या मतलब है।

धनतेरस का मतलब क्या होता है (What is the meaning of Dhanteras)

धनतेरस शब्द का अर्थ धन को तेरह गुणा बढ़ाना और उसमे वृद्धि करने वाला दिन।

इस दिन भगवान धन्वंतरि अपने साथ अमृत का कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे ।

भगवान धन्वंतरि का जन्म समुद्र मंथन में हुआ था।

हिंदू पौराणिक कथाओं में धनतेरस का अर्थ क्या है ?(What is the meaning of Dhanteras in Hindu mythology)

धनतेरस का अर्थ – हिंदू पौराणिक कथाओं में यह माना जाता है कि “यह उत्सव दिवाली से पहले कृष्ण पक्ष त्रयोशादी वाले दिन होता है।

यह त्यौहार धन समृद्धि का प्रतीक है, और तेरस तेरहवें दिन का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इस त्यौहार का नाम धनतेरस है।

क्योंकि देवी लक्ष्मी,धन की देवी, समृद्धि, खुशी प्रदान करती है।

व्यापारियों के लिए इस दिन उनकी पूजा करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

 धनतेरस

धनतेरस के दौरान रसोई के उपकरण क्यों खरीदे जाते हैं? (Why are kitchen appliances bought during Dhanteras?)

भगवान धन्वंतरि इस दिन समुद्र मंथन से हाथ में अमृत से भरा कलश लेकर निकले थे।

इस अवसर पर बर्तन खरीदने का एक पौराणिक रिवाज है क्योंकि भगवान धन्वंतरि कलश लेकर आए थे।

धनिये के बीज, जिनकी पूजा भगवान लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा में की जाती है, इस दिन खरीदे जाते हैं और शुभ माने जाते हैं।

इन बीजों को दिवाली के बाद उनके बगीचों या खेतों में बोया जाता है।

ताकि परिवार में खुशियाँ और सुख समृद्धि बनी रहे।

धनतेरस का इतिहास (History of Dhanteras)

धनतेरस हमारे धार्मिक प्रथाओ से जुड़ा हुआ पर्व है।

इसका दूसरा नाम धन्वंतरि जयंती है।

यह उत्सव हमारे पूर्वजों द्वारा पीढ़ियों से मनाया जाता रहा है।

और आने वाले वर्षों में इसे हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाएगा।

हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक धनतेरस है।

धनतेरस के दौरान दीपावली के आने की घोषणा की जाती है।

दिवाली के कई सामानों की खरीदारी धनतेरस से पहले ही शुरू हो जाती है।

क्योंकि यह दीपावली से जुड़ी एक अनोखा पर्व है।

इसलिए दिवाली की शुरुआत और भी खुशनुमा हो जाती है।

द्रिकपंचांग के अनुसार इस दिन को “राष्ट्रीय आयुर्वेद जयंती” के रूप में मनाया जाता है।

धनतेरस क्यों मानते है ?(Why is Dhanteras celebrated?)

चिकित्सा के आविष्कारक और आयुर्वेद के संस्थापक भगवान धन्वंतरि को इस त्योहार के दौरान विशेष रूप से याद किया जाता है।

लोग इस दिन नए बर्तन खरीदते हैं, उनमें भोजन बनाते हैं और भगवान धन्वंतरि को भोग लगाते हैं।

धनतेरस ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पर्व है।

भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा धनतेरस के इतिहास से जुड़ी हुई है। ईसा से 10,000 साल पहले भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था।

भगवान धन्वंतरि प्रारंभ से ही कुशल शल्य चिकित्सक थे।

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान धन्वंतरि का जन्म कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था ।

वे अपने साथ अमृत से भरा हुआ कलश लेकर प्रकट हुए थे इस वजह से इस दिन को धनतेरस नाम से जाना जाता है।

2022 धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त (2022 Dhanteras auspicious time for worship)

22 अक्टूबर को धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त शाम सात बजे से शुरू होकर रात आठ बजे तक चलेगा।

इस दिन पूजा लगभग डेढ़ घंटे तक चलती है।

माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी की पूजा करने से संतोष, समृद्धि और खुशी मिलती है।

2022 में कब है धनतेरस?(When is Dhanteras in 2022?)

प्रदोष काल में त्रयोदशी तिथि को देवी लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है।

लक्ष्मी पूजा का शुभ दिन इस वर्ष 22 अक्टूबर को प्रदोष ऋतु के दौरान त्रयोदशी तिथि में मनाया जाएगा ।

इसलिए धनतेरस या धन त्रयोदशी एक पवित्र त्यौहार है।

इसे 22  अक्टूबर को मनाया जाएगा।

शनिवार, 22 अक्टूबर को शाम 6:02 बजे, हिंदू कैलेंडर कार्तिक महीने के दूसरे दिन कृष्ण त्रयोदशी की शुरुआत की घोषणा करता है।

यह धनतेरस शुभ मुहूर्त ।

जो 23 अक्टूबर की शाम 06.03.00 बजे तक जारी रहेगा।

इस वर्ष धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग है।

जो एक विशेष योग अभ्यास है।

कहा जाता है कि इस योग का परिणाम तीन गुना होता है।

त्रिपुष्कर योग धनतेरस के दिन दोपहर 1:50 बजे से शाम 6:02 बजे तक रहेगा।

धनतेरस के दिन इन बातों का ध्यान रखें। (Keep these things in mind on the day of Dhanteras)

  • धनतेरस के दिन किसी को उधार देने से बचें।
  • धनतेरस शुभ मुहूर्त का पता होना चाहिए
  • धनतेरस से पहले घर की सारी गंदगी दूर कर दें।
  • क्योंकि इस दिन गंदे घर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती है।
  • इसलिए धनतेरस के एक दिन पहले घर को पूरी तरह साफ कर लें।
  • कहा जाता है कि लक्ष्मी घर के मुख्य द्वार से प्रवेश करती हैं।
  • इसलिए भूल से भी यहां गंदगी या खराब चीजें न छोड़ें।
  • घर के मुख्य द्वार को साफ सुथरा रखें।
  • धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और कुबेर की पूजा करें।
  • ऐसा माना जाता है कि केवल कुबेर की पूजा करने से आप साल भर बीमार रह सकते हैं।
  • धनतेरस के दिन सोना, चांदी या कोई कीमती धातु खरीदना बेहद शुभ होता है।
  • धनतेरस के दिन किसी भी नकली मूर्ति की पूजा न करें हो सके तो मां लक्ष्मी की मिट्टी, सोने या चांदी की मूर्ति की पूजा करें।
  • इस दिन कांच के बर्तन न खरीदने की सलाह दी जाती है।
  • घर में किसी भी प्रकार का नकली चिन्ह न लायें।
  • स्वस्तिक बनाने के लिए शुभ सामग्री जैसे कुमकुम, हल्दी या चंदन का प्रयोग करें।
  • धनतेरस के दिन झाड़ू जरूर खरीदना चाहिए।

धनतेरस की उत्पत्ति की कथा (Story of origin of Dhanteras)

  1. धनतेरस को पौराणिक कथा (Mythology of Dhanteras)

एक बार यमदूतों से मृत्यु के देवता यमराज ने प्रश्न किया कि जब तुम मनुष्य के प्राण लेते हो तब तुमको कभी किसी मनुष्य पर तरस (दया ) आया है की नहीं।

यमदूतों ने प्रश्न का जबाब देते हुए कहा कि नहीं महाराज हम तो सिर्फ आपके दिए गए निर्देषों का पालन करते हैं।

फिर यमराज ने कहा कि बिना डर के बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी मानव  के प्राण लेने में दया आई है।

एक यमदूत ने तब कहा कि महाराज एक दिन ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय भी कांप उठा था।

एक दिन एक राजा जिसका नाम हंस था।

वो जंगल में शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था।  

रास्ता भटकते-भटकते अन्य राजा की क्षेत्र पर चला गया था।

उस क्षेत्र में हेमा नाम का राजा ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया था।

हेमा नाम के राजा ने पड़ोस के राजा का आदर-सत्कार किया था।

उसी दिन राजा की पत्नी के द्वारा एक पुत्र को जन्म भी दिया गया था ।

बालक की विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु हो जाएगी(The child will die only after four days of marriage)

ज्योतिषों ने ग्रह-नक्षत्र के बुनियाद पर बताया कि जब इस बालक का विवाह होगा तो उसके चार दिन के बाद इसकी मृत्यु होना निश्चित है (अर्थात बालक की विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु हो जाएगी)।

उस समय राजा बहुत परेशान हो गए थे और अंत में उन्होंने यह निर्णय लिया कि इस बालक को ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए। 

राजा ने आदेश दिया कि बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जायगा ।

और वहां तक किसी भी स्त्रियों की परछाईं भी नहीं पहुंच सकती।

उस गुफा में बालक की सुख सुविधा का भी पूरा ध्यान रखा गया था।

लेकिन विधि के विधान को तो कुछ और ही मंजूर था।

संयोग से राजा हंस की बेटी यमुना नदी के किनारे पर चली गई और उसने वहां राजा के बेटे को देखा और दोनों ने गंधर्व विवाह किया।

शादी के चार दिन बाद राजा के बेटे का निधन हो गया।

यमदूत ने तब महसूस किया कि नवविवाहिता की करुणामयी पीड़ा को सुनकर वह तड़प रहा था।

सब कुछ सुनने के बाद, यमराज ने टिप्पणी की कि यह तो विधि का ही विधान है।

 और हमें अपनी गरिमा में रहते हुए यह काम करना पड़ता है।

यमराज ने अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताया (Yamraj told the way to avoid premature death)

यमदूतो ने पूछा कि क्या अकाल मृत्यु को रोकना संभव है।

तब यमराज ने उत्तर दिया कि धनतेरस के दिन नियमानुसार दीपों की पूजा और दान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है।

इस घटना के परिणामस्वरूप, दीपों का दान किया जाता है।

 और धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

श्री हरि विष्णु के वामन अवतार का धनतेरस से संबंध (The relation of Vamana avatar of Shri Hari Vishnu with Dhanteras)

एक अन्य धनतेरस से संबंधित मान्यता यह है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि के डर से देवताओं को मुक्त करने और राजा बलि के बलिदान के लिए वामन का रूप लिया था।

इसके अतिरिक्त, शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को वामन के रूप में पहचाना

और राजा बलि को वामन के सभी अनुरोधों को ठुकराने की सलाह दी।

वामन ने कहा की मुझे केवल तीन पग भूमि ही चाहिए।

शुक्राचार्य ने बलि को दान देने के लिए मना किया

और कहा यह स्वय विष्णु भगवान है यह तीन पग में सारा संसार नाप देंगे।  

बलि ने शुक्राचार्य की सलाह की अवहेलना की।

और वामन को कहा की मैने आपको दान दे दिया,

तब वामन कहते है की ऐसे नहीं महाराज आपको संकल्प लेना होगा ।

बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य अपने सूक्ष्म वेश में वामन के कमंडल के पास पहुंचे।

इस प्रकार शुक्राचार्य वामन के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए।

अपने वामन अवतार में, भगवान विष्णु शुक्राचार्य के छल को समझने में सक्षम थे।

भगवान विष्णु को छल समझ आ गया

फिर विष्णु ने एक लकड़ी टोटी के अंदर डाली जिससे की शुक्राचार्य की आँख फुट गई ।

शुक्राचार्य जल्दी से कमंडल से बाहर निकल गए।

कमंडल से जल प्राप्त करके, बलि ने भगवान द्वारा अनुरोधित तीन कदम भूमि प्रदान करने की शपथ ली।

उसके बाद, भगवान वामन ने एक पैर से पूरी दुनिया को माप लिया और दूसरे से अंतरिक्ष को माप लिया ।

बली ने अपना सिर भगवान वामन के चरणों में झुकाया क्योंकि उनके पास तीसरा कदम उठाने के लिए कोई स्थान नहीं था।

उसने सब कुछ त्याग दिया, इस तरह बलि के भय से देवता मुक्त हो गये।

और बलि ने जो भी धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा ज्यादा धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई।

इस वजह से भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

धनवंतरी के संबंध में एक मान्यता (A belief in relation to Dhanvantari)

ऐसा दावा किया जाता है कि दिव्य अमृत को देवताओं और राक्षसों के बीच लौकिक संघर्ष से बाहर लाया गया था।

जब दोनों पक्ष देवताओं के चिकित्सक धन्वंतरि और विष्णु की अभिव्यक्ति द्वारा अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे।

परिणामस्वरूप, इसे धन्वंतरि नाम दिया गया, जो दिव्य चिकित्सक का दूसरा नाम है।

धनतेरस की तैयारी कैसे करे?(How to prepare for Dhanteras?)

लोग इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

वे त्योहार से कुछ दिन पहले रीति-रिवाजों के अनुसार अपने घरों को सावधानीपूर्वक साफ करते हैं,

और त्योहार के दिन, वे उन्हें दीयों, मोमबत्तियों, पेंट, फूलों और कई अन्य चीजों से सजाते हैं।

वे दरवाजे को रंगोली से सजाते हैं

और मुख्य दरवाजे के ठीक बाहर छोटे पैरों के स्टिकर इस उम्मीद में लगाते हैं कि देवी लक्ष्मी उनके निवास में प्रवेश करेंगी।

आपको धन की देवी को प्रसन्न करना चाहिए ताकि आपके परिवार में सुख शांति और स्मृद्धि बनी रहे। ।

धनतेरस पूजा की प्रक्रिया (The process of Dhanteras worship)

पूजा के लिए कलश, चावल, कुमकुम, नारियल और पान सहित कई तरह की चीजों की जरूरत होती है।

पूजा शुरू करने के लिए दीपक जलाना चाहिए और पूरी रात जलाना चाहिए।

प्रथागत अपेक्षा यह है कि भक्त भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मिट्टी, चांदी, या किसी अन्य प्रकार की धातु की मूर्तियों की पूजा करेंगे।

किसी भी प्लास्टर या कांच की मूर्तियों को खरीदने से बचें।

पूजा के दौरान परिवार के प्रत्येक सदस्य को बारी-बारी से बैठना चाहिए।

पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी के तीन अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है: महालक्ष्मी, महाकाली और सरस्वती

भगवान कुबेर और भगवान गणेश भी पूजनीय हैं।

क्योंकि उन्हें समृद्धि, शिक्षा, शांति और सद्भाव के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

प्रसाद के रूप में फल, मिठाई और सूखे मेवे का सेवन करना चाहिए।

मंदिर में ताजे फूल लगाएं, विशेष रूप से लाल गुलाब और कमल।

धूप, कपूर या अगरबत्ती जलाएं।

धनतेरस शुभ मुहूर्त में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आरती, घंटी बजाना और मंत्र जाप का करना चाहिए।

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करवा चौथ पूजा क्या है ? सुहागिन स्त्रियाँ करवा चौथ का व्रत क्यों रखती है?(What is Karva Chauth Puja? Why do married women observe Karva Chauth fast?) https://learnwithvikas.com/%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%b5%e0%a4%be-%e0%a4%9a%e0%a5%8c%e0%a4%a5/ https://learnwithvikas.com/%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a4%b5%e0%a4%be-%e0%a4%9a%e0%a5%8c%e0%a4%a5/#respond Thu, 13 Oct 2022 09:01:02 +0000 https://learnwithvikas.com/?p=910 करवा चौथ का त्यौहार (The festival of Karva Chauth) हिंदू धर्म में करवा चौथ के पर्व का विशेष महत्व है। विवाहित महिलाओं के लिए, यह पर्व उनके प्रेम, त्याग और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। इस अवसर पर महिलाएं सुबह से ही व्रत रखने का संकल्प लेती हैं। और शाम को चांद देखने और […]

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करवा चौथ का त्यौहार (The festival of Karva Chauth)

हिंदू धर्म में करवा चौथ के पर्व का विशेष महत्व है।

विवाहित महिलाओं के लिए, यह पर्व उनके प्रेम, त्याग और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

इस अवसर पर महिलाएं सुबह से ही व्रत रखने का संकल्प लेती हैं।

और शाम को चांद देखने और पूजा करने के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं।

हिंदू कैलेंडर में कहा गया है कि करवा चौथ का त्योहार हर साल कार्तिक महीने में

कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

उत्तर भारत के राज्य, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा,  हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश,

राजस्थान और उत्तराखंड में इस पर्व को बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं।

करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं जल्दी उठती हैं, स्नान करती हैं, श्रृंगार करती हैं

और व्रत रखने की शपथ लेती हैं।

करवा चौथ व्रत कथा सुनने और रात में चंद्रमा को देखकर व्रत तोड़ने के लिए सभी विवाहित

महिलाएं इस त्योहार के दौरान एक स्थान पर एकत्रित होती हैं।

इस बार शुक्र और चतुर्थी तिथि की स्थिति के कारण करवा चौथ व्रत के समय को लेकर मतभेद है।

करवा चौथ 13 अक्टूबर को या फिर 14 अक्टूबर को मनाया जाना चाहिए

 या नहीं, इस पर ज्योतिषी के विचार अलग-अलग हैं।

करवा चौथ व्रत के लिए उचित दिन, समय, शुभ समय

और पूजा के महत्व के बारे में हम आपको पर्याप्त जानकारियां देंगे ।

2022 में  करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त (Auspicious time of 2022 Karva Chauth Puja)

इस बार करवा चौथ का त्यौहार के लिए अनेक शुभ मुहूर्त बन रहे हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार (According)13 अक्तूबर 2022 को करवा चौथ की  पूजा करने  का

सबसे अच्छा मुहूर्त शाम को  04 : 08 मिनट से लेकर 05 : 50 मिनट तक रहेगा।

इस मुहूर्त को अमृतकाल मुहूर्त माना गया है ।

सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का त्यौहार के दिन के अभिजीत मुहूर्त काल में भी कर सकती  है।

मुहूर्त शास्त्र की मान्यता के अनुसार उस दिन के अभिजीत मुहू्र्त में कोई भी शुभ कार्य या पूजा की जा सकती है।

अमृतकाल का मुहूर्त- शाम 04 : 08 मिनट से शाम 05 : 50 मिनट तक है ।

अभिजीत काल का  मुहूर्त- सुबह 11 : 21 मिनट से दोपहर 12 : 07 मिनट तक का है।

इस बार करवा चौथ का त्यौहार पर चांद निकलने का सही समय क्या है(What is the right time to set the moon on Karva Chauth this time)

शहर के नाम  :  चाँद निकलने का समय

दिल्ली     8 : 09  मिनट पर चाँद निकलेगा।

नोएडा     8 :08  मिनट पर चाँद निकलेगा।

मुंबई      8 :48  मिनट पर चाँद निकलेगा।

जयपुर     8 :18  मिनट पर चाँद निकलेगा।

देहरादून    8 : 02  मिनट पर चाँद निकलेगा।

लखनऊ    7 : 59  मिनट पर चाँद निकलेगा।

शिमला    8 :03  मिनट पर चाँद निकलेगा।

गांधीनगर  8 : 51  मिनट पर चाँद निकलेगा।

इंदौर      8 : 27  मिनट पर चाँद निकलेगा।

भोपाल     8 : 21  मिनट पर चाँद निकलेगा।

अहमदाबाद 8 : 41  मिनट पर चाँद निकलेगा।

कोलकाता  7 : 37  मिनट पर चाँद निकलेगा।

पटना      7 : 44  मिनट पर चाँद निकलेगा।

प्रयागराज   7: 57  मिनट पर चाँद निकलेगा।

कानपुर    8 : 02  मिनट पर चाँद निकलेगा।

चंडीगढ़    8 : 06  मिनट पर चाँद निकलेगा।

लुधियाना   8 :10  मिनट पर चाँद निकलेगा।

जम्मू      8 :08  मिनट पर चाँद निकलेगा।

बंगलूरू     8: 40  मिनट पर चाँद निकलेगा।

गुरुग्राम    8: 21  मिनट पर चाँद निकलेगा।

असम      7 : 11  मिनट पर चाँद निकलेगा।

13 अक्टूबर को या 14 अक्टूबर को, करवा चौथ कब मनाएं? (When to celebrate Karva Chauth on 13th or 14th October?)

हिंदू कैलेंडर की गणना के अनुसार करवा चौथ का व्रत हर साल

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

इस वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि 13 अक्टूबर को दोपहर 01:59 बजे से शुरू होगी,

जो 14 अक्टूबर को दोपहर 03:08 बजे समाप्त होगी।

हिंदू धर्म में कोई भी व्रत-त्योहार उदय तिथि के आधार पर तय किया जाता है।

इसी वजह से इस साल करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर 2022 को ही मनाया जाएगा।

करवा चौथ 2022 की मान्यता (Recognition of Karva Chauth 2022)

हिंदू धर्म में करवा चौथ का विशेष महत्व माना जाता है।

विवाहित महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं।

शिव और पार्वती के साथ करवा माता की पूजा करती हैं।

और अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।

वहीँ चंद्रमा की पूजा करके सुखी दाम्पत्य की कामना करती हैं।

पूजा के दौरान चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद चलनी से पति का चेहरा देखा जाता है।

उसके बाद ही पानी पिया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा के पूजन से पति को दीर्घ आयु मिलती है।

और पति-पत्नी के बीच प्रेम में वृद्धि होती है।

इस दिन सुहागिन महिलाएं चंद्रमा को निमित्त बनाकर पार्वती जैसी पत्नी बनना चाहती हैं।

क्योंकि माता पार्वती आर्दश महिलाओं की प्रतीक मानी जाती हैं।

सुहागन महिलाएं माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं कि जिस प्रकार सती सावित्री का सौभाग्य अमर रहा।

उसी तरह उनका भी सौभाग्य बना रहे।

करवा चौथ का त्यौहार में चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग किया गया था

उस दौरान उनका सिर सीधा चंद्रलोक चला गया था।

ऐसा माना जाता है कि उनका सिर आज भी चंद्रलोक में मौजूद है।

चूकि भगवान गणेश जी को वरदान था की हर पूजा से पहले उनकी पूजा की जाएगी ।

भगवान गणेश जी का सिर चंद्रलोक में होने की वजह से करवा चौथ का त्यौहार पर चंद्रमा की खास पूजा की जाती है।

करवा चौथ

चंद्रमा की प्रार्थना और पूजा कैसे करें (How to pray and worship the moon)

शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा को अर्घ्य देते समय ध्यान रखें कि पानी में थोड़ा सा दूध भी मिलाएं।

ऐसा करने से मन में सभी प्रकार के नकारात्मक विचार,

असुरक्षा की भावना, पति के स्वास्थ्य की चिंता और दुर्भाग्य खत्म हो जाता है।

साथ ही, कुंडली में चंद्रमा की स्थिति भी मजबूत हो जाती हैं।

इससे सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है और पति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।

 चंद्रमा को अर्घ्य देते समय पढ़ें ये मंत्र (Read this mantra while offering Arghya to the moon on Karva Chauth)

ये व्रत पति पत्नी के लिए एक दूसरे के प्रति समर्पण, अपार प्रेम, त्याग व विश्वास का प्रतीक लेकर आता है।

करवा चौथ पर चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए।

ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है और घर-परिवार में सुख-शांति का वास होता है।

गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥

छलनी में दीया रखकर ही चंद्रमा की पूजा क्यों करते है  (Purpose of worshiping with the sieve of the moon)

पहला करवा चौथ बेहद उल्लेखनीय होता है इसमें शगुन का भी ध्यान रखा जाता है।

चंद्रमा में सौंदर्य, प्रेम और दीर्घायु जैसे गुण होते हैं,

इसलिए सभी महिलाएं चाहती हैं कि उनके पति में भी यही गुण हों।

चंद्रमा की छलनी से पूजा करने की एक कथा है।

आइए अब हम आपके साथ वह कहानी साझा करते हैं।

परंपरा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी।

करवा चौथ पर बेटी ने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखा था।

भाइयों ने अपनी बहन को रात को खाने के लिए कहा जब सभी ने खाना शुरू किया,

तो बहन ने यह कहते हुए मना कर दिया, कि “भैया! 

अभी तक चाँद नहीं निकला है इसलिए मैं अभी खाना नहीं खा सकती।

मै चाँद की पूजा करने के बाद ही खाना खाऊगी।

भाईयो ने मिलकर बहन को खिलाने के बारे में सोचा।

भाइयों ने दीया किसी दूर ऊँचे स्थान पर रख दिया।

और दीये की ओर इशारा करते हुए अपनी बहन को छलनी से बत्ती दिखाकर,

उसे खाना खाने और अर्घ्य देने की सलाह दी और कहा की चाँद उग आया है ।

वीरवती इस तरकीब को सच मान लेती है और अग्नि को अर्ध्य देकर खाना शुरू कर देती है।

लेकिन इससे पहले कि भोजन का टुकड़ा भी होठों तक पहुंचे, अपशकुन दिखाई देने लगे!

पहले कोर में बाल निकले, दूसरे में उन्हें छींक आई और तीसरे में उन्हें पता चला कि उनके पति का निधन हो गया है।

वीरावती अपने पति के निर्जीव शरीर को देखकर अत्यंत दुखी हुई ।

देवी इंद्राणी इंद्र देव की पत्नी वहां पहुंची और वीरवती को अपना आत्म-दोषपूर्ण विलाप सुनते ही

उन्हें दिलासा देना शुरू कर दिया।

देवी इंद्राणी से वीरवती ने सवाल किया कि करवा चौथ के दिन उनके पति का निधन क्यों हुआ।

इंद्राणी ने जवाब दिया कि आपके पति का समय से पहले निधन इसलिए हो गया

क्योंकि आपने चंद्रमा को अर्ध्य दिए बिना अपना करवा चौथ का व्रत तोड़ा है।

देवी इंद्राणी ने वीरवती को करवा चौथ व्रत के अलावा हर महीने की चौथ पर उपवास शुरू करने की सलाह दी।

यदि आप इन व्रतों को सच्चे मन से रखती है तो आपका पति फिर से जीवित हो जाएगा।

और उनका पति जीवित हो गया था।

विवाहिता का व्रत टूटने से बचाने के लिए वह छलनी में दीया लगाकर चंद्रमा की पूजा करने लगी।

 व्रत करने वाली महिलाओं के दिन की शुरुआत (Beginning of the day of women observing Karva Chauth fast)

इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं जल्दी उठती हैं, स्नान करती हैं और पवित्र कपड़े पहनती हैं। 

भारतीय रिवाज के अनुसार, ज्यादातर महिलाएं इस त्योहार के लिए साड़ी पहनने का आनंद लेती हैं।

ये दिन सभी सुहागन महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है।

इसलिए इस मौके पर महिलाएं अपने पति के लिए खूब सजती संबरति है।

सोलह श्रृंगार करती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती है ,हाथों में चूड़ियाँ पहनकर शुभ महूर्त पर पति की पूजा करती है।

सूर्योदय से पहले उठकर महिलाए सरगी का सेवन करती है सरगी में अनार, केला

और पपीते जैसे पौष्टिक फलों इत्यादि का सेवन करती है।

सरगी व्यंजन को खाने के बाद पूरा दिन महिलाए कुछ नहीं खाती है ।

आपको बतादें की इस व्रत में पानी का भी सेवन नहीं किया जाता है।

करवा चौथ व्रत की विधि  (Method of Karva Chauth fasting)

  • निर्जला व्रत पुरे दिन का होता है ।
  • शाम को मंदिर में भगवान गणेश, माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करें।
  • माता पार्वती को शहद युक्त वस्तुएँ दें।
  • फिर सच्चे मन से माता पार्वती का ध्यान करें।
  • सभी विवाहित महिलाओं को व्रत के बारे में सुनना चाहिए,
  • और शाम को चंद्रमा को देखने के बाद ही उन्हें अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करना चाहिए।
  • अपने जीवनसाथी, सास-बहू और बड़ों के आशीर्वाद से उसके बाद इस व्रत को समाप्त करें।
  • यह व्रत चंद्रमा से प्रार्थना करने के बाद पति के चरणों को सहलाने और रात के आकाश में चंद्रमा के प्रकट होने पर अपने पति के  हाथों से जलपान प्राप्त करने पर  तोड़ा जाता है।

ऐसे शुरू हुई थी करवा चौथ व्रत रखने की परंपरा  (This is how the tradition of keeping Karva Chauth fast started)

  1. ब्रह्मदेव ने दी थी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह (Brahmadev had advised the wives of the gods to observe the fast of Karva Chauth)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्‍य भयंकर युद्ध छिड़ा था।

पौराणिक कथा के अनुसार, देवता और दानव में एक बार खूनी संघर्ष (भयंकर युद्ध छिड़ा ) हुआ था।

अनगिनत प्रयासों के बावजूद, देवता विफल हो रहे थे, और अंततः राक्षसों की जीत हो रही थी।

 तब ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत करने की आज्ञा दी।

उन्होंने  दावा किया कि इस व्रत को रखने से उनके  पति राक्षसों की लड़ाई में जीत हासिल करेंगे ।

उसके बाद, सभी ने व्रत रखा और कार्तिक माह में चतुर्थी के दिन अपने जीवनसाथी की युद्ध में सफलता की कामना की।

कहा जाता है कि तभी से लोग करवा चौथ का व्रत रखते हैं।

देवी मां ने की थी इसकी शुरुआत  (Mother Goddess had started Karva Chauth)

कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने शक्ति की आड़ में शुरुआत में भोलेनाथ के लिए यह व्रत रखा था।

इस व्रत से उन्हें शाश्वत सुख की प्राप्ति हुई थी।

विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करने

और भगवान शिव और देवी पार्वती का सम्मान करने के लिए करवा चौथ पूजा करती हैं।

करवा चौथ व्रत का प्रसंग महाभारत काल में भी म‍िलता है (The context of Karva Chauth fasting is also found in the Mahabharata period)

करवा चौथ का त्यौहार की एक और कथा महाभारत काल से मिलती है।

जिसके अनुसार अर्जुन एक बार नीलगिरि पर्वत पर तपस्या करने गए थे।

उस काल में पांडवों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा।

तब द्रौपदी ने श्री कृष्ण से पूछा कि पांडवों को उनकी दुर्दशा से कैसे निकाला जाए।

इसके जवाब में कन्हैया ने उन्हें कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत करने का निर्देश दिया।

इसके बाद, द्रौपदी ने करवा चौथ  का उपवास किया और पांडवों को उनकी समस्याओं से मुक्ति मिली।

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी की सही पूजा विधि और आध्यात्मिक महत्व क्या है?(What is the correct worship method and spiritual significance of Shri Krishna Janmashtami?) https://learnwithvikas.com/%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%83%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%a3-%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%ae%e0%a5%80/ https://learnwithvikas.com/%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%83%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%a3-%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a4%ae%e0%a5%80/#respond Mon, 25 Jul 2022 13:41:48 +0000 https://learnwithvikas.com/?p=246 श्री कृष्ण जन्माष्टमी, जिस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, उस दिन को जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। अगस्त या सितंबर में, भारत में भगवान श्री कृष्ण के जन्म को बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है । हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह पर्व कृष्ण पक्ष की अष्टमी को […]

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी, जिस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था,

उस दिन को जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है।

अगस्त या सितंबर में, भारत में भगवान श्री कृष्ण के जन्म को बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है ।

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह पर्व कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है,

जो कि कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि है।

भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माना जाता है।

उनका जन्म 5,200 साल पहले मथुरा में हुआ था।

और इसी कारण मथुरा को कृष्णभूमि के नाम से भी जाना जाता है।

भारत में अधिकांश हिंदू इस अवसर को मनाते हैं।

इस छुट्टी को लोगों द्वारा कृष्ण जन्माष्टमी, श्री जयंती, गोकिलाष्टमी

और श्रीकृष्ण जयंती के नाम से भी जाना जाता है ।

भगवान कृष्ण का जन्म दुनिया से बुराई को मिटाने

और प्रेम और भाईचारे का संदेश फैलाने के लिए हुआ था।

भगवान कृष्ण, जो देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे,

उन्होंने उस भविष्यवाणी को पूरा किया कि वह निर्दयी कंस की हत्या करेंगे।

लेकिन जब बाल कृष्ण बहुत छोटे थे, तब राजा कंस ने उनकी हत्या के कई प्रयास किए।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी

श्री कृष्ण जन्माष्टमी कैसे मनाई जाती है?( How is Krishna Janmashtami observed?)

सभी हिंदुओं के लिए, कृष्ण जन्माष्टमी एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवकाश है,

और उस दिन वे उपवास भी रखते हैं।

अगले दिन आधी रात के बाद, अनुयायी अपना उपवास तोड़ते हैं।

इसके अतिरिक्त, वे आरती करते हैं और भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु और कृष्ण की स्तुति में गीत गाते हैं।

भक्त भगवान के कुछ श्लोक भी गाते हैं।

कृष्ण की मूर्ति को एकदम नए, चमकदार पोशाक, मुकुट और अन्य आभूषणों से अलंकृत किया जाता है।

कई हिंदू मंदिरों में इस दिन के लिए रोशनी और फूलों जैसी सजावट भी होती है।

मंदिरों में तरह-तरह के भजन और कीर्तन किए जाते हैं।

कई आध्यात्मिक स्थानों पर कृष्ण के जीवन पर आधारित नाटक और नृत्य होते हैं।

यहां तक ​​कि स्कूल भी इस शुभ त्योहार के लिए युवा छात्रों को भगवान कृष्ण की वेशभूषा में तैयार करते हैं,

और नृत्य प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं।

दही हांडी कार्यक्रम, जो श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन होता है,

इस त्योहार के दौरान होने वाली एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है।

यह परंपरा, जो प्रत्येक श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर की जाती है,

इस तथ्य की याद दिलाती है कि भगवान कृष्ण को बचपन में माखन चोर के नाम से जाना जाता था।

इसमें दही हांडी को एक निश्चित ऊंचाई पर रस्सी पर लटकाया जाता है

और एक व्यक्ति को एक समूह बनाकर उस हांडी में एक छेद करना होता है।

जब कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर बड़ी संख्या में दर्शक इकट्ठा होते हैं,

तो दिल्ली और वृंदावन में इस्कॉन मंदिर, वृंदावन में प्रेम मंदिर,

राजस्थान में श्री नाथजी मंदिर, ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर

और जयपुर में गोविंद देव जी मंदिर जैसे स्थानों को खूबसूरती से सजाया जाता है।

इसके अतिरिक्त, त्योहार की विशिष्ट विशेषताओं को उजागर करने के लिए

व्यस्त क्षेत्रों में कई विस्तृत झाकियों का मंचन किया जाता है।

मथुरा, वृंदावन, गोकुल और द्वारिका में, जहां कृष्ण का संपूर्ण जीवन  बिता था,

कई विस्तृत झाकियों का मंचन किया जाता है।

कई मंदिर रास लीला प्रदर्शन की मेजबानी करते हैं,

और कई भक्त इसके परिणामस्वरूप मंदिरों में जाते हैं।

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भारत के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रीय त्यौहार-India’s Most Popular National Festivals https://learnwithvikas.com/%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8c%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0/ https://learnwithvikas.com/%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8c%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0/#respond Tue, 19 Jul 2022 13:34:37 +0000 https://learnwithvikas.com/?p=205 भारत में उत्सवों की एक विस्तृत विविधता है। इनमें से कई त्यौहार  पूरे देश में मनाए जाते  हैं और कुछ अपने राज्य में । आइए भारत के कुछ सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय त्योहारों को देखें। दीपावली का त्यौहार (Diwali festival) बिना किसी संदेह के दीपावली भारत में आयोजित होने वाला सबसे प्रसिद्ध त्योहार है। रोशनी का […]

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भारत में उत्सवों की एक विस्तृत विविधता है।

इनमें से कई त्यौहार  पूरे देश में मनाए जाते  हैं और कुछ अपने राज्य में ।

आइए भारत के कुछ सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय त्योहारों को देखें।

दीपावली का त्यौहार (Diwali festival)

बिना किसी संदेह के दीपावली भारत में आयोजित होने वाला सबसे प्रसिद्ध त्योहार है।

रोशनी का यह राष्ट्रीय हिंदू त्योहार शरद ऋतु में मनाया जाता है और पूरे देश में मनाया जाता है।

लोग अपने घरों को मोमबत्तियों, मिट्टी के दीयों और रोशनी से सजाते हैं,

पटाखे जलाते हैं, उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं और प्रियजनों के साथ सम्मान व्यवहार करते हैं ।

चूंकि यह एक अमावस्या की रात होती है, टिमटिमाते दीपक

और रोशनी पूरे दृश्य को एक अद्भुत गुणवत्ता प्रदान करते हैं।

दिवाली, रावण पर भगवान राम की विजय और 14 साल के वनवास के बाद

अपनी पत्नी के साथ घर वापसी के सम्मान में मनाया जाता है  ।

यह बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतिनिधित्व करता है।

भारत के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रीय त्यौहार(India’s Most Popular National Festivals).

भारतीय त्योहारों की सूची में एक और उल्लेखनीय नाम होली है।

यह वसंत के आगमन और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतिनिधित्व करता है

और इसे प्यार और रंग के त्योहार के रूप में जाना जाता है।

यह पूरे देश में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

आमतौर पर, उत्सव होली से एक रात पहले शुरू होते हैं।

लोग आग के चारों ओर गाते और नृत्य करते हैं।

त्योहार के दिन लोग एक दूसरे को कई तरह के गीले और सूखे रंगों में ढकते हैं।

त्यौहार

नवरात्रि का त्यौहार (festival of navratri)

नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। संस्कृत में नवरात्रि का अर्थ है “नौ रातें”।

जैसा कि इसके नाम से पता चलता है, यह उत्सव नौ दिन और रात तक चलता है।

नवरात्रि में देवी शक्ति की कई तरह से पूजा की जाती है।

रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे पुरुष, महिलाएं और बच्चे जीवंत डांडिया रास

और गरबा नृत्य का आनंद लेते हैं जो उत्तर भारत में नवरात्रि समारोह का हिस्सा हैं।

दुर्गा पूजा का त्यौहार (Durga Puja festival)

दुर्गा पूजा देश के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है और विशेष रूप से पश्चिम बंगाल,

असम, ओडिशा, त्रिपुरा, झारखंड और बिहार में इसे खूब पसंद किया जाता है।

विशेष रूप से इस अवसर के लिए बनाए गए मंडपों में दुर्गा पूजा के दौरान

दस भुजाओं वाली देवी दुर्गा की विशाल मिट्टी की मूर्तियों की पूजा की जाती है।

लोग तैयार होकर अपनों के साथ कई पंडालों में जाते हैं।

त्योहार के भव्य समापन के रूप में देवी की मूर्ति को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है।

दशहरा का त्यौहार (festival of dussehra)

दशहरे पर नवरात्रि और दुर्गा पूजा का समापन होता है।

यह विजयादशमी के नाम से जाना जाता है और भारतीय त्योहार में एक जाना-माना नाम है।

दशहरा देश भर में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है।

जहां कुछ राज्य इसे रावण पर भगवान राम की जीत को याद करने के लिए मनाते हैं,

वहीं अन्य इसे महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत के रूप में देखते हैं।

जन्माष्टमी (Janmashtami)

भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाने वाले भगवान कृष्ण का जन्म जन्माष्टमी के दिन हुआ था।

यह सबसे महत्वपूर्ण हिंदू अवकाश है, और इसे व्यापक रूप से भव्यता और धूमधाम से मनाया जाता है।

इस दिन, भगवान कृष्ण के अनुयायी मंदिरों और अपने घरों में देवता की पूजा करते हैं।

मथुरा और वृंदावन के दो ऐतिहासिक भारतीय स्थान, जहां कृष्ण का जन्म हुआ

और जहाँ  उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्ष बिताए, नियमित रूप से नृत्य और मंत्रों के साथ शानदार उत्सव होते हैं।

गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)

भारत के सभी त्योहारों में गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी का हिंदुओं के लिए विशेष महत्व है।

यह त्योहार बहुचर्चित हिंदू देवता, भगवान गणेश जी के जन्म की याद दिलाता है।

दस दिनों तक चलने वाले रंगारंग कार्यक्रम इस उत्सव को चिह्नित करते हैं।

इसकी शुरुआत घरों और सार्वजनिक मंडपों में कलात्मक रूप से तैयार की गई

गणेश मूर्तियों की स्थापना से होती है।

लोग बहुत उत्साह और उल्लास के साथ देवता की पूजा करते हैं।

मीठी ईद (Eid-ul-Fitr)

मुस्लिम आबादी के लिए सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक छुट्टियों में से एक ईद-उल-फितर, या बस ईद है।

यह रमजान के समापन का प्रतीक है, जो उपवास का एक पवित्र महीना है।

यह त्यौहार उस दिन मनाया जाता है जब रात के दौरान एक अर्धचंद्र दिखाई देता है।

ईद मनाने वाले लोग मस्जिदों में नमाज अदा करते हैं, दोस्तों और परिवार से मिलने जाते हैं

और उनके साथ भोजन करते हैं।

मीठी सेवइयां संभवत: सबसे प्रसिद्ध ईद का प्रतीक है।

इस दिन, पूरे देश में मस्जिदों और बाजारों को भव्य रूप से सजाया जाता है।

क्रिसमस (Christmas)

क्रिसमस ईसा मसीह के जन्म की याद में मनाया जाता है, इसलिए ईसाइयों के लिए इसका विशेष अर्थ है।

चर्चों को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है।

सजावट के साथ क्रिसमस ट्री लोगों के घरों और भारत के सभी बड़े मॉल में भी लगाएजाते है।

स्थानीय चर्चों में प्रार्थना सेवाओं में भाग लेने, उपहारों का आदान-प्रदान करने

और प्रियजनों के साथ भोजन का आनंद लेने के साथ यह दिन मनाया जाता है।

महा शिवरात्रि (Maha Shivratri)

महा शिवरात्रि, जैसा कि त्योहार के नाम से पता चलता है,

एक हिंदू देवता भगवान शिव को श्रद्धांजलि देने का उत्सव है।

यह वार्षिक उत्सव अज्ञानता और अंधकार के खिलाफ जीवन के संघर्ष के रूप में कार्य करता है।

पूरे देश में, लोग महा शिवरात्रि मनाते हैं, जिसे शिव की महान रात के रूप में भी जाना जाता है।

महा शिवरात्रि एकमात्र हिंदू अवकाश है जिसमें किसी भी प्रकार का सांस्कृतिक उत्सव शामिल नहीं होता है।

इसके बजाय, इसमें उपवास, प्रार्थना जप, ध्यान और शिव लिंग पूजा शामिल है।

भक्त पूरी रात जागकर परंपरा के अनुसार पूजा करते हैं।

रक्षाबंधन (Rakshabandhan)

राखी या रक्षाबंधन भाई और बहन के रिश्ते को महत्व देता है।

इस प्रसिद्ध हिंदू त्योहार पर, बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं।

बदले में, भाई अपनी बहनों को एक उपहार और ज़रूरत के समय उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।

भाइयों और बहनों के लिए यह उत्सव बहुत महत्वपूर्ण है।

कई बॉलीवुड फिल्मों में भी भाई-बहन के भावनात्मक बंधन को उजागर किया गया है।

ओणम का त्यौहार(Onam Festival)

ओणम राजा महाबली की याद का समय है ।

जो इस समय पृथिवी पर अपने प्रजा को देखने आते है।

नाव दौड़, फूलों की प्रदर्शनी, पूजा, नृत्य, और असाधारण दावतें सभी ओणम समारोह का हिस्सा हैं,

जिसमें बहुत भव्यता और आनंद होता है।

यदि आप इस उत्सव के दौरान केरल में हैं तो शानदार सांप नौका दौड़, हाथी जुलूस,

या करामाती कैकोट्टिकली नृत्य देखना न भूलें।

बैसाखी का त्यौहार(festival of baisakhi)

सबसे महत्वपूर्ण सिख और पंजाबी त्यौहार में से एक बैसाखी, रबी कृषि फसल के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।

पंजाब के लोग और पंजाबी प्रवासी दुनिया भर में इस फसल उत्सव को बहुत उत्साह और खुशी के साथ मनाते हैं।

लोक नृत्य प्रदर्शन जैसे भांगड़ा और गिद्दा, घर और गुरुद्वारा की सजावट,

और भव्य दावतें भी समारोह का हिस्सा हैं।

गुरपुरब (Gurpurab)

गुरुपर्व, एक और महत्वपूर्ण सिख उत्सव है,

जो पहले सिख गुरु, गुरु नानक के जन्म का सम्मान करता है।

इसे गुरुपर्व, गुरु नानक जयंती और गुरु नानक के प्रकाश उत्सव के रूप में भी जाना जाता है।

त्योहार से पहले, लोग तीन दिनों तक गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं।

वे गुरु की शिक्षाओं पर चर्चा करने और गुरुद्वारों में सांप्रदायिक दावतों की

मेजबानी करने के लिए विशेष सभाएं भी आयोजित करते हैं।

मकर संक्रांति त्यौहार (Makar Sankranti)

मकर संक्रांति त्यौहार सौर कैलेंडर के अनुसार मनाई जाने वाली भारतीय उत्सव में से एक है।

यह सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ, शीतकालीन संक्रांति और लंबे दिनों की शुरुआत करता है।

पूरे भारत में, इस घटना को कई नामों से जाना और मनाया जाता है।

इसे उत्तर भारत में माघी, असम में माघ बिहू, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पेड्डा पांडुगा,

तमिलनाडु में थाई पोंगल और मध्य भारत में सुकरत के रूप में मनाया जाता है।

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दीपावली क्यों मनाते हैं? दीपावली का क्या महत्व है ? (Why celebrate Diwali? What is the significance of Diwali?) https://learnwithvikas.com/%e0%a4%a6%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a5%80/ https://learnwithvikas.com/%e0%a4%a6%e0%a5%80%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b5%e0%a4%b2%e0%a5%80/#respond Wed, 06 Jul 2022 11:28:20 +0000 https://learnwithvikas.com/?p=115 दीपावली का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने रावण का वध कर 14 वर्ष का वनवास पूर्ण करने के बाद जननी जन्मभूमि अयोध्या वापस लौटे थे। वही इस पावन पर्व को लेकर और भी कई कथाएं भी हैं। हमारे भारत में वैसे तो अनेकों पर्व मनाया जाते हैं, […]

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दीपावली का सनातन धर्म में विशेष महत्व है।

इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने रावण का वध कर

14 वर्ष का वनवास पूर्ण करने के बाद जननी जन्मभूमि अयोध्या वापस लौटे थे।

वही इस पावन पर्व को लेकर और भी कई कथाएं भी हैं।

हमारे भारत में वैसे तो अनेकों पर्व मनाया जाते हैं,

जिसमें से कुछ ऐसे भी पर्व है, जो कि भारतीय इतिहास में अपना विशेष महत्व रखते हैं।

भारत में मनाए जाने वाले इन सभी धार्मिक त्योहारों की सूची में सबसे ऊपर दशहरा

और दिवाली आता है।

दिवाली का यह त्यौहार दशहरे के ठीक 20 दिन बाद आता है।

दिवाली भारत में मनाया जाने वाला एक ऐसा त्यौहार है,

जिसमें लोग अपने घरों को पूरी तरह से जलते हुए दिए से सजाते हैं,

पटाखों के साथ अपने दिवाली के त्यौहार को मनाते हैं।

दीपावली भगवान श्री राम रावण का वध कर लौटे थे अयोध्या

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जी

रावण का वध कर चौदह वर्ष के वनवास के बाद जननी जन्मभूमि अयोध्या वापस लौटे थे।

जिसकी खुशी में पूरी अवध नगरी दीये की चकाचौंध से सजाई जाती है

और इसका हर्षोल्लास पूरे देश में देखने को मिलता है।

दीपावली के दिन हुआ था माता लक्ष्मी का जन्म (Mother Lakshmi was born on the day of Deepawali)

हिंदू धर्म और शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि माता लक्ष्मी धन की देवी है।

ऐसा भी कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की अमावस्या के दिन

मंथन के समय माता लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी

और तभी से माता लक्ष्मी के जन्म के उपलक्ष में दीपावली का यह त्यौहार

मनाया जाता है और यही कारण है कि दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

भगवान श्री हरि विष्णु ने बचाया था माता लक्ष्मी को (Lord Shri Hari Vishnu had saved Mata Lakshmi)

समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुई माता लक्ष्मी को असुर राज बाली ने कैद कर लिया था

और माता लक्ष्मी को राजा बाली के कैद से छुड़ाने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु ने पांचवा अवतार लिया,

जो कि भगवान विष्णु का वामन अवतार कहा जाता है।

वामन ने ही माता लक्ष्मी को कार्तिक अमावस्या के दिन राजा बाली के कैद से रिहा किया था

और इस कारण से भी दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

इस दिन श्रीकृष्ण जी ने नरकासुर का किया था वध (On this day Shri Krishna ji killed Narakasura.)

जब नरकासुर नामक दैत्य ने अपने आतंक से तीनों लोको में हाहाकार मचा दिया था

और सभी देवी-देवता व ऋषि मुनि उसके अत्याचार से परेशान हो गए थे।

तब श्रीकृष्ण जी ने पत्नी सत्यभामा को अपना सारथी बनाकर उसका वध किया था,

क्योंकि उसे वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु किसी महिला के हाथो ही होगी।

उसका वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने 16000 महिलाओं को मुक्त कराया था

तथा समाज में सम्मान दिलाने के लिए उनसे विवाह किया था।

इस जीत की खुशी को दो दिन तक मनाया गया था।

जिसे छोटी दीपावली और दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

देवी शक्ति ने धारण किया था महाकाली का रूप (Goddess Shakti took the form of Mahakali)

माता शक्ति ने राक्षसों के बढ़ते आतंक को देखकर राक्षसों का वध करने के लिए

महाकाली का रूप धारण किया और राक्षसों का विनाश करने लगे

उनके इस रूप से पूरे संसार में खलबली मच गई थी और महाकाली का क्रोध शांत नहीं हो रहा था।

इसीलिए भगवान शिव उनके सामने नीचे जाकर लेट गए

और भगवान शिव के शरीर के एक स्पर्श के कारण ही माता महाकाली का क्रोध शांत हो गया

और इसी कारण से दिवाली के त्योहार को शांत रूप से माता लक्ष्मी की पूजा करके मनाया जाता है।

दीपावली के त्यौहार को मानाने के पीछे की अन्य पौराणिक मान्यताएं (Other mythological beliefs behind the making of Diwali festival)

जैन धर्म के अनुसार विशेष दिन है यह. (This day is special according to Jainism)

जैन धर्म के लोगों के अनुसार पूजनीय और आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव

के द्वारा दीपावली के दिन ही निर्वाण प्राप्त किया गया था

और यही कारण है कि जैन धर्म के लोगों के द्वारा भी इस दिन को विशेष रूप से मनाया जाता है।

दीपावली

सिख धर्म के लिए भी खास है यह दीपावली दिन (This day is also special for Sikhism)

दीपावली के दिन सिख धर्म के अनुयायी ‘बंदी छोड़ दिवस’ के नाम से त्यौहार मनाते हैं।

इस त्यौहार को मनाने के पीछे का इतिहास बड़ा रोचक है।

जानकारी के मुताबिक सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए बादशाह जहांगीर ने

सिखों के छठवें गुरू हरगोविंद साहिब जी को बंदी बना लिया।

उसने हरगोविंद साहिब जी को ग्वालियर के किले में कैद कर दिया

जहां पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद थे।

लेकिन संयोग से जब जहांगीर ने गुरू हरगोविंद साहिब जी को कैद किया, वह बहुत बीमार पड़ गया।

काफी इलाज के बाद भी वह ठीक नहीं हो रहा था।

तब बादशाह के काजी ने उसे सलाह दिया कि वह इसलिए बीमार पड़ गया है

क्योंकि उसने एक सच्चे गुरु को कैद कर लिया है। 

जहांगीर ने तुरंत गुरु को छोड़ने का आदेश जारी कर दिया।

लेकिन गुरु हरगोविंद सिंह जी ने अकेले रिहा होने से इनकार कर दिया।

उन्होंने कहा कि वे जेल से बाहर तभी जायेंगे जब उनके साथ कैद सभी 52 हिन्दू राजाओं को भी रिहा किया जायेगा। 

लेकिन यह आदेश जारी करते समय भी जहांगीर ने एक शर्त रख दी।

उसकी शर्त थी कि कैद से गुरू जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे जो सीधे गुरू जी का कोई अंग

या कपड़ा पकड़े हुए होंगे।

उसकी सोच थी कि एक साथ ज्यादा राजा गुरू जी को छू नहीं पायेंगे

और इस तरह बहुत से राजा उसकी कैद में ही रह जायेंगे।

जहांगीर की चालाकी देखते हुए गुरू जी ने एक विशेष कुरता सिलवाया जिसमें 52 कलियां बनी हुई थीं।

इस तरह एक-एक कली को पकड़े हुए सभी 52 राजा जहांगीर की कैद से आजाद हो गये।

जहांगीर की कैद से आज़ाद होने के बाद जब गुरू हरगोविंद सिंह जी

वापस अमृतसर पहुंचे तब पूरे गुरुद्वारे में दीप जलाकर गुरू जी का स्वागत किया गया।

कुछ समय पश्चात् इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाये जाने का फैसला लिया गया। 

इसी दिन हुआ था राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक (The coronation of King Vikramaditya took place on this day.)

राजा विक्रमादित्य का नाम आज भी आदर्श राजाओं में लिया जाता है,

वे प्राचीन भारत के महान सम्राट थे।

जनता के बीच विक्रमादित्य अपनी उदारता, साहस और विद्वानों के सरंक्षण के लिए जाने जाते थे।

कहते है कि विक्रमादित्य का राज्याभिषेक कार्तिक माह की अमावस्या को हुआ था।

पांडवो के अपने राज्य में लौटने की ख़ुशी में (In the joy of returning the Pandavas to their kingdom)

महाभारत की कहानी है कि कौरवों ने पांडवों को शकुनी मामा की चाल की मदद से 

शतरंज के खेल में पांडवों को हराया था, जिसके परिणामस्वरूप पांडवों को 13 वर्ष तक वन में जाना पड़ा था।

कहते है कि इसी कार्तिक माह की अमावस्या को पाँचों पांडव वनवास अवधि पूरी कर

फिर से अपने राज्य लौटे थे।

जिसके स्वागत में राज्य के लोगों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था।

दीपावली को फसलों का त्यौहार कहा जाता है (Diwali is called the festival of crops)

दीपावली का त्यौहार किसानों के लिए बहुत ही बड़ा त्यौहार होता है।

क्योंकि दीपावली का त्यौहार उसी समय आता है,

जिस समय खरीफ की फसल पूरी तरह से पक जाती है और इसे काटने का समय आता है।

किसान दीपावली त्यौहार को अपनी समृद्धि का संकेत मानते हैं

और इसीलिए दीपावली का त्यौहार बड़ी ही उत्साह के साथ मनाते हैं।

दीपावली को हिंदू नव वर्ष का दिन कहा जाता है (Diwali is known as the day of Hindu New Year.)

हिंदू व्यवसाई लोग दीपावली के साथ ही अपने नए साल को शुरू कर देते हैं

और अपने व्यवसाय को दीपावली दिन से ही अपने नए खाते को शुरू करते हैं।

सभी व्यवसाई लोग अपने नए साल को शुरू करने से पहले अपने सभी ऋणों का भुगतान करते हैं

और लोगों को दिए गए सभी धन को वापस भी लेते हैं।

आर्य समाज के लिए खास है यह दिन(This day is special for Arya Samaj)

भारतीय आर्य समाज की मान्यताओं के अनुसार भारतीय इतिहास में दीपावली के दिन

19वीं सदी के विद्वान महर्षि दयानंद जी को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।

स्वामी दयानंद जी ने ही आर्य समाज की स्थापना की थी

और दयानंद जी ने भाईचारे और इंसानियत को बढ़ावा दिया।

इन्हीं सभी बातों को ध्यान में रखते हुए आर्य समाज के लोगों के लिए दीपावली का यह दिन बहुत ही खास है।

दीपावली का महत्व (importance of Diwali)

  • दिवाली के दिन ही माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करता है तो उसके घर पर हमेशा माँ लक्ष्मी की कृपा  बनी रहती है।
  • दीपावली का त्यौहार विशेष रुप से बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य  में मनाया जाता है।
  • दिवाली का दिन लोगों को यह याद दिलाता है कि सच्चाई और अच्छाई की हमेशा जीत होती है।
  • दीपावली के दिन लोग एक दूसरे को उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं और एक-दूसरे को मिठाइयां खिलाकर मुंह मीठा भी करवाते हैं।
  • दीपावली के दिन लोगों के व्यवहार काफी अच्छे होते हैं और लोगों के बीच प्यार बना रहे, इसलिए लोग एक दूसरे के गले भी लगते हैं।

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