आर्यभट्ट

आर्यभट्ट भारत के पहले गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे।

सबसे पहले भारतीय गणितज्ञ जिनका काम और इतिहास आधुनिक विद्वानों के लिए उपलब्ध है।

उन्हें उसी नाम के 10 वीं शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ से अलग करने के लिए

उन्हें आर्यभट्ट I या आर्यभट्ट द एल्डर के रूप में भी जाना जाता है।  

उन्होंने गणित के क्षेत्र में व्यापक ज्ञान प्राप्त किया था।

उन्होंने कई ऐसी चीजों की भी खोज की, जिन पर आज भी भारतीयों को गर्व महसूस होता है।

उनकी प्रसिद्ध खोजें बीजगणितीय सर्वसमिकाएँ, त्रिकोणमितीय फलन, पाई का मान और स्थानीय मान प्रणाली आदि थीं।

आर्यभट्ट ने कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं जिन्हें गणित में बाइबल के रूप में माना जाता है।

गणित के क्षेत्र में कई युवा आर्यभट्ट से प्रेरित थे।

समाज में उनके योगदान की आज भी बहुत सराहना की जाती है।

Table of Contents

प्रारंभिक जीवन (early life)

आर्यभट्ट को भारत के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों (गणितज्ञ आर्यभट्ट) में से एक माना जाता है।

 ऐसे समय में जब बाकी दुनिया ने सटीक गिनती में भी महारत हासिल नहीं की थी,

उन्होंने ब्रह्मांड के रहस्यों को मानवता के सामने प्रकट किया।

यही कारण है कि भारत सरकार द्वारा अब तक लॉन्च किए गए पहले कृत्रिम उपग्रह को 19 अप्रैल, 1975 को “आर्यभट्ट उपग्रह” नाम दिया गया था।

आर्यभट्ट का जन्म (Birth of Aryabhatta)

कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म कुसुमपुर में हुआ था।

कुसुमपुर को पाटलिपुत्र उपनगर (वर्तमान पटना) के रूप में माना जाता है।

जबकि कुछ शिक्षाविद कुसुमपुर को पाटलिपुत्र कहते हैं।

उन्होंने यह लिखा  है कि  “कलियुग को 3600 साल बीत चुके हैं, और मैं 23 साल का हूँ “। 

भारतीय काल गणना के अनुसार कलियुग का आरंभ ईसा पूर्व 3101 में हुआ था  (माना  जाता है ) इसलिए आर्यभटीय का रचना काल  499 ई.  ठहरता है।

इस तरीके से हमें पता चलता है कि आर्यभट्ट का जन्म 476 ई. में हुआ था।

कुछ शिक्षाविदों के अनुसार, आर्यभट्ट का जन्म संस्कृत साहित्य में “अश्मकदेश” के रूप में जाना जाने वाले क्षेत्र में हुआ था।

जो नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच है।

आर्यभट्ट के ग्रंथों को कभी-कभी “अश्माक स्फुतंत्र” कहा जाता है।

बौद्ध धर्म के अनुसार अश्माका या असक दक्षिण मार्ग पर स्थित था।

आर्यभट्ट की पहचान समकालीन शोधकर्ताओं ने केरल के चमरावट्टम के मूल निवासी के रूप में की थी।

उन्होंने कहा कि श्रवणबेलगोला के आसपास का क्षेत्र जिसे अस्माका के नाम से जाना जाता है, एक जैन क्षेत्र था।

इस जैन बस्ती में चमरावट्टम नामक स्थान शामिल था।

अधिकांश शिक्षाविद केरल को आर्यभट्ट का जन्म स्थान मानते हैं।

चूँकि आर्यभट्ट की कृति “आर्यभटीय” पर अधिकांश भाष्य दक्षिण भारत में लिखे गए थे, विशेषकर केरल में।

इस स्थान से मलयालम लिपि में हस्तलिखित आर्यभटीय प्रतियाँ भी प्राप्त हुई हैं। इसके अलावा, आर्यभट्ट के दर्शन के अधिकांश अनुयायी दक्षिण भारत में खोजे गए थे।

 इससे स्पष्ट होता है कि आर्यभट्ट का जन्म केरल में हुआ था।

किन्तु अभी भी विद्वानों के इस विषय में एकमत नहीं है।

आर्यभट्ट

आर्यभट्ट की शिक्षा (Education of Aryabhatta)

आर्यभट्ट ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा कुसुमपुर के प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में कि

जहां पर जैनों का निर्णायक प्रभाव था।

आर्यभट्ट का ग्रंथ आर्यभटीय (Aryabhatta’s book Aryabhatiya)

आर्यभट्ट द्वारा लिखित आर्यभटीय पुस्तक में उनके द्वारा की गई खोजों का वर्णन है।

लेकिन उनके अनुयायियों और अन्य लोगों ने इस ग्रंथ को आर्यभटीय नाम दिया है।

इस पुस्तक के शीर्षक (नाम) का उन्होंने कहीं भी खुलासा नहीं किया है।

उनके लिखे हुए को पढ़ना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि इस ग्रंथ को छंद/पद्य तरीके से लिखा गया है।

इसमें 108 छंदों के अतिरिक्त 13 और परिचय श्लोक हैं।

आर्यभट्ट की रचनाये (Aryabhatta’s works)

आर्यभट्ट की मुख्य खोज कार्य (Aryabhatta’s main discovery work)

  • अंकगणित
  • बीजगणित
  • त्रिकोणमिति
  • सतत भिन्न 
  • द्विघात समीकरण 
  • ज्याओं तालिका
  • घात श्रृंखलाओं का योग

आर्यभटीय के चार खण्ड (The four volumes of Aryabhatiya)

  • गीतिकापाद 
  • गणितपाद
  • काल क्रियापद
  • गोलपाद

गीतिकापाद (lyricpad)

आर्यभटीय के चारों खंडों में यह सबसे छोटा भाग शामिल है।

इसमें 13 श्‍लोक हैं।

श्‍लोक मंगलाचरण इस खण्‍ड का पहला श्‍लोक है।

इस खण्‍ड को गीतिकापाद इस लिए कहा जाता है क्योंकि इस खण्‍ड के 9 अन्य  श्‍लोक गीतिका छंद में है। 

ज्‍योतिष के महत्‍वपूर्ण सिद्धाँतों की जानकारी भी इस खण्‍ड में दी गयी है।

संस्कृत अक्षरों के द्वारा संख्याएँ लिखने की एक ‘अक्षराँक पद्धति के बारे में भी  इस खण्‍ड में  बताया गया है।

अक्षरों के द्वारा बड़ी संख्‍याओं को लिखने की एक असान तकनीक 

“अक्षराँक पद्धति ” है।

आर्यभट ने  इस पद्धति में अ से लेकर ओ तक के अक्षरों को 1 से लेकर 1,00,00,00,00,00,00,00 तक शतगुणोत्‍तर मान दिया।

क से लेकर  म तक के सभी अक्षरों को 1 से लेकर 25 संख्‍याओं के मान दिया है।

य से लेकर ह तक के व्‍यंजनों को 30, 40, 50 के क्रम में 100 तक का मान दिया है।

इस तरह उन्होंने छोटे शब्दों  के द्वारा बड़ी संख्याओं  को लिखने का एक आसान  तकनीक विकसित की है।

गणितपाद (mathematic)

यह खंड गणित पर चर्चा करता है। इसमें कुल 33 श्लोक हैं।

इस खंड में अंकगणित, बीजगणित और ज्यामिति शामिल हैं।

इन विषयों में वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल, त्रिभुज का क्षेत्रफल, वृत्त और चतुर्भुज, एक प्रिज्म का आयतन, एक गोले का आयतन, एक वृत्त की परिधि और एक समकोण त्रिभुज का क्षेत्रफल शामिल हैं।

इसमें बहू, कोटि आदि की चर्चा हुई है।

काल क्रियापद (tense verb)

“काल गणना ” (“समय गिनने”) काल क्रियापाद का अर्थ है।

इस खंड में कुल 25 छंद हैं। खगोल विज्ञान इस खंड का मुख्य विषय है।

सौर वर्ष, चंद्र मास, नक्षत्र दिवस, बीच का महीना, ग्रह प्रणाली और गति सभी का वर्णन समय और चक्र के विभाजन के साथ किया गया है।

गोलपाद (round pad)

आर्यभटीय का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण अंग यही है।

इस खण्ड में कुल 50 श्लोक हैं।

यह खंड बताता है कि कैसे एक खगोलीय क्षेत्र में ग्रहों की गति का प्रतिनिधित्व किया जाता है।

इस खंड में प्रत्येक प्रमुख खगोल विज्ञान विचार के आर्यभट्ट की व्याख्या भी शामिल है।

आर्यभट्ट का योगदान (Aryabhatta’s Contribution)

आर्यभट्ट का प्रमुख योगदान गणित के क्षेत्र में था।

उनके द्वारा विभिन्न त्रिकोणमितीय कार्यों की खोज की गई जो आधुनिक समय के गणित में बहुत प्रासंगिक हैं।

‘पाई’ के मूल्य के संबंध में आर्यभट्ट का आविष्कार गणित की जटिलताओं को दूर करता है।

लेकिन, उनका स्थानीय मान और शून्य का आविष्कार गणित के क्षेत्र में मास्टरस्ट्रोक है।

‘आर्यभटीय’ पुस्तक में कई खगोलीय सिद्धांत लिखे गए हैं।

आर्यभट्ट न केवल गणित में कुशल थे बल्कि उन्हें खगोल विज्ञान का भी अपार ज्ञान था।

उनके सूर्य केन्द्रित सिद्धांत के अनुसार ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

वे अपने सिद्धांत की सहायता से सूर्य से संबंधित विभिन्न ग्रहों की गति की गणना की।

उनके द्वारा नक्षत्र घुमाव की गणना भी की गई थी।

खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उनकी प्रमुख खोजों में से एक नक्षत्र वर्ष था

जिसमें कहा गया है कि यह एक वर्ष में 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनट और 30 सेकंड होना चाहिए।

यह वर्तमान गणना से केवल 3 मिनट और 20 सेकंड से विचलित होता है।

यह आर्यभट्ट ही थे जो इस तथ्य की सही खोज की थी कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।

वे सौर मंडल के भू-केंद्रीय मॉडल का भी अनुमान लगाया, जिसमें कहा गया था कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है।

सूर्य, चंद्रमा और ग्रह इसके चारों ओर चक्कर लगाते हैं।

उनकी पुस्तक में सूर्य और चंद्र ग्रहणों का भी वर्णन किया गया है।

यह तथ्य कि सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण पृथ्वी और चंद्रमा की छाया के कारण होता है, उनकी पुस्तक में समझाया गया है।

यह कहा जा सकता है कि आर्यभट्ट द्वारा खगोल विज्ञान के क्षेत्र में किए गए अनुमान बहुत सटीक थे।

कम्प्यूटेशनल प्रतिमान का मूल आर्यभट्ट के सिद्धांतों द्वारा उत्पन्न होता है।

भारतीय नागरिकों के रूप में, हमें आर्यभट्ट पर गर्व महसूस करना चाहिए

क्योंकि उन्होंने ऐसी चीजों का आविष्कार किया था,

जिनकी आज के समय में आधुनिक उपकरणों की सुविधाओं के बिना कल्पना नहीं की जा सकती है।

आर्यभट्ट की विरासत (Aryabhatta’s Legacy)

आर्यभट्ट ने न केवल भारतीय संस्कृति में बल्कि पड़ोसी संस्कृतियों में भी ज्ञान की विरासत छोड़ी।

उनकी खगोलीय टिप्पणियों पर बहुत विश्वास किया गया और पड़ोसी देशों की विभिन्न भाषाओं में उनका अनुवाद किया गया।

आधुनिक दुनिया की खोजों ने साबित कर दिया कि वह सौर मंडल के केंद्र में सूर्य की स्थिति और केंद्र के चारों ओर घूमने वाले सभी ग्रहों पर अपने सिद्धांत के बारे में सही थे।

आर्यभट्ट ने चंद्र ग्रहण क्यों और कैसे होता है, इसका भी संक्षिप्त परिचय दिया।

ब्रह्मांड विज्ञान में उनके द्वारा किए गए सभी योगदानों के लिए आधुनिक दुनिया में उनके ज्ञान की विरासत की बहुत प्रशंसा की जाती है।

आर्यभट्ट का योगदान(Aryabhatta’s Contribution)

पृथ्वी की परिधि का अनुमान (estimation of the circumference of the earth)

अब इससे सभी सहमत हैं कि ग्लोब गोल है और अपनी धुरी पर घूमता है,

जिसके कारण रात और दिन होते हैं।

हालांकि, बहुत से लोग इस बात से अनजान हैं कि आर्यभट्ट ने “निकोलस कॉपरनिकस” से बहुत पहले पृथ्वी की गोलाई और परिधि  की खोज की थी।

आर्यभट्ट ने हिंदू धर्म की इस मान्यता को खारिज कर दिया कि राहु नाम का ग्रह सूर्य और चंद्रमा को निगल लेता है और सूर्य और चंद्र ग्रहण का कारण बनता है।

चंद्र ग्रहण क्यों होता है (why does lunar eclipse happen)

उन्होंने पता लगाया कि चंद्र ग्रहण क्यों होता है?

जब पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के सामने से गुजरती है, तब चंद्रमा पर छाया पड़ती है।

आर्यभट्ट को यह भी पता था कि पृथ्वी और अन्य ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। और चंद्रमा और अन्य ग्रह सूर्य की किरणों से प्रकाशित होते हैं, न कि अपने आंतरिक प्रकाश से।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि ‘चंद्रमा’ वास्तव में काला है और केवल सूर्य द्वारा प्रकाशित किया जाता है।

जैसा कि आर्यभट्ट ने प्रदर्शित किया था, वास्तव में एक वर्ष में 365.2951 दिन होते हैं, 366 नहीं।

चंद्रमा ग्रहण के सिद्धांत (principles of solar eclipse)

आर्यभट्ट के “बलिस सिद्धांत” (सूर्य चंद्रमा ग्रहण के सिद्धांत), “रोमाका सिद्धांत,” और “सूर्य सिद्धांत” विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।

गणित में आर्यभट्ट का योगदान असाधारण है।

उन्होंने ऐसे सूत्र प्रदान किए जो वृत्तों और त्रिभुजों के क्षेत्रफलों की गणना के लिए अच्छी तरह से काम करते थे।

उनके उत्कृष्ट कार्यों के कारण, गुप्त सम्राट बुद्धगुप्त ने उन्हें विश्वविद्यालय के प्रमुख नियुक्त(chief appointed) किया था।

रात , दिन  और वर्षा (Night, Day and Rain)

आर्यभट्ट के अनुसार, पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमने में 23 घंटे 56 मिनट और 4.1 सेकंड का समय लगता है।

हाल के विशेषज्ञों के अनुसार, यह अवधि 23 घंटे 56 मिनट 4.09 सेकंड है, जो दर्शाता है कि आर्यभट्ट का अनुमान केवल 0.01 सेकंड से कम था।

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पृथ्वी 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनट और 30 सेकंड में तारों के चारों ओर एक चक्कर लगाती है।

वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुमान बताते हैं कि इस समय में केवल 3 मिनट की अशुद्धि है, और केवल 3 मिनट अधिक हैं।

पाई का मान (value of pi)

उन्होंने पाई का अपरिमेय मान प्रदान किया।

उन्होंने पाई के मान की गणना की, जो कि 62832/20000 = 3.1416 था,

जो आधुनिक गणना के काफी करीब था।

आर्यभट्ट ने “साइन टेबल” प्रस्तुत किया (Aryabhatta presented the “Sign Table”)

वो ऐसे पहले गणितज्ञ (mathematician) थे जिन्होंने “ज्या  तालिका” (sine table) के बारे में बताया जो की तुकांत वाले एक छंद के रूप में थी जहाँ हर एक  इकाई वृत्त-चाप (arc ) के 225 मिनट्स या 3 डिग्री 45 मिनट्स के अंतराल पर बढ़ती थी।

वृद्धि संग्रह को परिभाषित करने के लिए, वर्णमाला(Aryabhatta’s) कोड का प्रयोग किया ।

यदि हम आर्यभट्ट की तालिका का प्रयोग करें और  Sine30  के मान की गणना करें तो 1719/3438 = 0.5 एकदम सही निकलता है।

शून्य का अविष्कार (origin of zero)

आर्यभट्ट सिफर के रूप में उनके वर्णमाला कोड को जाना जाता है।

लेकिन शून्य (0) की शानदार खोज की बदौलत उनका नाम हमेशा जिंदा रहेगा।

जिसके बिना गणित की कल्पना करना कठिन है।

स्थानीय मान प्रणाली की व्याख्या करने वाले पहले व्यक्ति अर्भट्ट थे।

वह पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले पृथ्वी के उपग्रह के रूप में चंद्रमा के उदाहरण का उपयोग करते हुए यह समझाने वाले पहले व्यक्ति थे कि दुनिया सूर्य के चारों ओर अपनी धुरी पर घूमती है।

उसने सोचा कि सभी ग्रहों की लंबी, गोलाकार कक्षाएँ होती हैं।

उसने समझाया कि चंद्रमा का प्रकाश वास्तव में सूर्य के कारण है।

आर्यभट्ट ने आकाशीय पिंड की स्थिति की जानकारी प्रदान की (Aryabhatta provided information about the position of the celestial body)

ग्रहों की गति

आर्यभट्ट ने आकाश में आकाशीय पिंड की स्थिति के बारे में भी जानकारी प्रदान की।

24902 मील के मौजूदा अनुमान की तुलना में उन्होंने कहा कि दुनिया की परिधि 24835 मील थी।

आर्यभट्ट ने लगातार अपने नियम का पालन किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।

उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर लोग सितारों को उसी तरह से चलते हुए अनुभव करते हैं जैसे चलती नाव में कोई व्यक्ति कैसे मानता है कि पेड़ और पौधे जैसी स्थिर वस्तुएं उससे दूर जा रही हैं, या किनारे की ओर जा रही हैं।

पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है जबकि तारे गतिहीन रहते हैं, जिससे यह आभास होता है कि तारे पश्चिम की ओर बढ़ रहे हैं।

उन्होंने दावा किया कि चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी सभी ग्रह की परिक्रमा करते हैं।

इन दोनों ग्रहों के घूमने को कभी धीमा और तेज कहा जाता था।

उन्होंने ग्रहों को पृथ्वी से उनकी दूरी के अनुसार क्रम में रखा: चंद्रमा, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल, बृहस्पति और शनि और तारे ।

आर्यभट्ट की मृत्यु कब हुई थी ? (When did Aryabhatta die?)

आर्यभट्ट की मृत्यु का समय व स्थान का अभी तक पूर्ण रूप से नहीं पता चल पाया है ।

परंतु यह  माना जाता है कि आर्यभट्ट की मृत्यु (74 वर्ष) 550 ईस्वी में हुई थी।

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