करवा चौथ

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करवा चौथ का त्यौहार (The festival of Karva Chauth)

हिंदू धर्म में करवा चौथ के पर्व का विशेष महत्व है।

विवाहित महिलाओं के लिए, यह पर्व उनके प्रेम, त्याग और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

इस अवसर पर महिलाएं सुबह से ही व्रत रखने का संकल्प लेती हैं।

और शाम को चांद देखने और पूजा करने के बाद अपना व्रत तोड़ती हैं।

हिंदू कैलेंडर में कहा गया है कि करवा चौथ का त्योहार हर साल कार्तिक महीने में

कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

उत्तर भारत के राज्य, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा,  हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश,

राजस्थान और उत्तराखंड में इस पर्व को बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं।

करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं जल्दी उठती हैं, स्नान करती हैं, श्रृंगार करती हैं

और व्रत रखने की शपथ लेती हैं।

करवा चौथ व्रत कथा सुनने और रात में चंद्रमा को देखकर व्रत तोड़ने के लिए सभी विवाहित

महिलाएं इस त्योहार के दौरान एक स्थान पर एकत्रित होती हैं।

इस बार शुक्र और चतुर्थी तिथि की स्थिति के कारण करवा चौथ व्रत के समय को लेकर मतभेद है।

करवा चौथ 13 अक्टूबर को या फिर 14 अक्टूबर को मनाया जाना चाहिए

 या नहीं, इस पर ज्योतिषी के विचार अलग-अलग हैं।

करवा चौथ व्रत के लिए उचित दिन, समय, शुभ समय

और पूजा के महत्व के बारे में हम आपको पर्याप्त जानकारियां देंगे ।

2022 में  करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त (Auspicious time of 2022 Karva Chauth Puja)

इस बार करवा चौथ का त्यौहार के लिए अनेक शुभ मुहूर्त बन रहे हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार (According)13 अक्तूबर 2022 को करवा चौथ की  पूजा करने  का

सबसे अच्छा मुहूर्त शाम को  04 : 08 मिनट से लेकर 05 : 50 मिनट तक रहेगा।

इस मुहूर्त को अमृतकाल मुहूर्त माना गया है ।

सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का त्यौहार के दिन के अभिजीत मुहूर्त काल में भी कर सकती  है।

मुहूर्त शास्त्र की मान्यता के अनुसार उस दिन के अभिजीत मुहू्र्त में कोई भी शुभ कार्य या पूजा की जा सकती है।

अमृतकाल का मुहूर्त- शाम 04 : 08 मिनट से शाम 05 : 50 मिनट तक है ।

अभिजीत काल का  मुहूर्त- सुबह 11 : 21 मिनट से दोपहर 12 : 07 मिनट तक का है।

इस बार करवा चौथ का त्यौहार पर चांद निकलने का सही समय क्या है(What is the right time to set the moon on Karva Chauth this time)

शहर के नाम  :  चाँद निकलने का समय

दिल्ली     8 : 09  मिनट पर चाँद निकलेगा।

नोएडा     8 :08  मिनट पर चाँद निकलेगा।

मुंबई      8 :48  मिनट पर चाँद निकलेगा।

जयपुर     8 :18  मिनट पर चाँद निकलेगा।

देहरादून    8 : 02  मिनट पर चाँद निकलेगा।

लखनऊ    7 : 59  मिनट पर चाँद निकलेगा।

शिमला    8 :03  मिनट पर चाँद निकलेगा।

गांधीनगर  8 : 51  मिनट पर चाँद निकलेगा।

इंदौर      8 : 27  मिनट पर चाँद निकलेगा।

भोपाल     8 : 21  मिनट पर चाँद निकलेगा।

अहमदाबाद 8 : 41  मिनट पर चाँद निकलेगा।

कोलकाता  7 : 37  मिनट पर चाँद निकलेगा।

पटना      7 : 44  मिनट पर चाँद निकलेगा।

प्रयागराज   7: 57  मिनट पर चाँद निकलेगा।

कानपुर    8 : 02  मिनट पर चाँद निकलेगा।

चंडीगढ़    8 : 06  मिनट पर चाँद निकलेगा।

लुधियाना   8 :10  मिनट पर चाँद निकलेगा।

जम्मू      8 :08  मिनट पर चाँद निकलेगा।

बंगलूरू     8: 40  मिनट पर चाँद निकलेगा।

गुरुग्राम    8: 21  मिनट पर चाँद निकलेगा।

असम      7 : 11  मिनट पर चाँद निकलेगा।

13 अक्टूबर को या 14 अक्टूबर को, करवा चौथ कब मनाएं? (When to celebrate Karva Chauth on 13th or 14th October?)

हिंदू कैलेंडर की गणना के अनुसार करवा चौथ का व्रत हर साल

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

इस वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि 13 अक्टूबर को दोपहर 01:59 बजे से शुरू होगी,

जो 14 अक्टूबर को दोपहर 03:08 बजे समाप्त होगी।

हिंदू धर्म में कोई भी व्रत-त्योहार उदय तिथि के आधार पर तय किया जाता है।

इसी वजह से इस साल करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर 2022 को ही मनाया जाएगा।

करवा चौथ 2022 की मान्यता (Recognition of Karva Chauth 2022)

हिंदू धर्म में करवा चौथ का विशेष महत्व माना जाता है।

विवाहित महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं।

शिव और पार्वती के साथ करवा माता की पूजा करती हैं।

और अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं।

वहीँ चंद्रमा की पूजा करके सुखी दाम्पत्य की कामना करती हैं।

पूजा के दौरान चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद चलनी से पति का चेहरा देखा जाता है।

उसके बाद ही पानी पिया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा के पूजन से पति को दीर्घ आयु मिलती है।

और पति-पत्नी के बीच प्रेम में वृद्धि होती है।

इस दिन सुहागिन महिलाएं चंद्रमा को निमित्त बनाकर पार्वती जैसी पत्नी बनना चाहती हैं।

क्योंकि माता पार्वती आर्दश महिलाओं की प्रतीक मानी जाती हैं।

सुहागन महिलाएं माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं कि जिस प्रकार सती सावित्री का सौभाग्य अमर रहा।

उसी तरह उनका भी सौभाग्य बना रहे।

करवा चौथ का त्यौहार में चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग किया गया था

उस दौरान उनका सिर सीधा चंद्रलोक चला गया था।

ऐसा माना जाता है कि उनका सिर आज भी चंद्रलोक में मौजूद है।

चूकि भगवान गणेश जी को वरदान था की हर पूजा से पहले उनकी पूजा की जाएगी ।

भगवान गणेश जी का सिर चंद्रलोक में होने की वजह से करवा चौथ का त्यौहार पर चंद्रमा की खास पूजा की जाती है।

करवा चौथ

चंद्रमा की प्रार्थना और पूजा कैसे करें (How to pray and worship the moon)

शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा को अर्घ्य देते समय ध्यान रखें कि पानी में थोड़ा सा दूध भी मिलाएं।

ऐसा करने से मन में सभी प्रकार के नकारात्मक विचार,

असुरक्षा की भावना, पति के स्वास्थ्य की चिंता और दुर्भाग्य खत्म हो जाता है।

साथ ही, कुंडली में चंद्रमा की स्थिति भी मजबूत हो जाती हैं।

इससे सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है और पति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।

 चंद्रमा को अर्घ्य देते समय पढ़ें ये मंत्र (Read this mantra while offering Arghya to the moon on Karva Chauth)

ये व्रत पति पत्नी के लिए एक दूसरे के प्रति समर्पण, अपार प्रेम, त्याग व विश्वास का प्रतीक लेकर आता है।

करवा चौथ पर चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए।

ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है और घर-परिवार में सुख-शांति का वास होता है।

गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते। गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥

छलनी में दीया रखकर ही चंद्रमा की पूजा क्यों करते है  (Purpose of worshiping with the sieve of the moon)

पहला करवा चौथ बेहद उल्लेखनीय होता है इसमें शगुन का भी ध्यान रखा जाता है।

चंद्रमा में सौंदर्य, प्रेम और दीर्घायु जैसे गुण होते हैं,

इसलिए सभी महिलाएं चाहती हैं कि उनके पति में भी यही गुण हों।

चंद्रमा की छलनी से पूजा करने की एक कथा है।

आइए अब हम आपके साथ वह कहानी साझा करते हैं।

परंपरा के अनुसार एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी।

करवा चौथ पर बेटी ने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखा था।

भाइयों ने अपनी बहन को रात को खाने के लिए कहा जब सभी ने खाना शुरू किया,

तो बहन ने यह कहते हुए मना कर दिया, कि “भैया! 

अभी तक चाँद नहीं निकला है इसलिए मैं अभी खाना नहीं खा सकती।

मै चाँद की पूजा करने के बाद ही खाना खाऊगी।

भाईयो ने मिलकर बहन को खिलाने के बारे में सोचा।

भाइयों ने दीया किसी दूर ऊँचे स्थान पर रख दिया।

और दीये की ओर इशारा करते हुए अपनी बहन को छलनी से बत्ती दिखाकर,

उसे खाना खाने और अर्घ्य देने की सलाह दी और कहा की चाँद उग आया है ।

वीरवती इस तरकीब को सच मान लेती है और अग्नि को अर्ध्य देकर खाना शुरू कर देती है।

लेकिन इससे पहले कि भोजन का टुकड़ा भी होठों तक पहुंचे, अपशकुन दिखाई देने लगे!

पहले कोर में बाल निकले, दूसरे में उन्हें छींक आई और तीसरे में उन्हें पता चला कि उनके पति का निधन हो गया है।

वीरावती अपने पति के निर्जीव शरीर को देखकर अत्यंत दुखी हुई ।

देवी इंद्राणी इंद्र देव की पत्नी वहां पहुंची और वीरवती को अपना आत्म-दोषपूर्ण विलाप सुनते ही

उन्हें दिलासा देना शुरू कर दिया।

देवी इंद्राणी से वीरवती ने सवाल किया कि करवा चौथ के दिन उनके पति का निधन क्यों हुआ।

इंद्राणी ने जवाब दिया कि आपके पति का समय से पहले निधन इसलिए हो गया

क्योंकि आपने चंद्रमा को अर्ध्य दिए बिना अपना करवा चौथ का व्रत तोड़ा है।

देवी इंद्राणी ने वीरवती को करवा चौथ व्रत के अलावा हर महीने की चौथ पर उपवास शुरू करने की सलाह दी।

यदि आप इन व्रतों को सच्चे मन से रखती है तो आपका पति फिर से जीवित हो जाएगा।

और उनका पति जीवित हो गया था।

विवाहिता का व्रत टूटने से बचाने के लिए वह छलनी में दीया लगाकर चंद्रमा की पूजा करने लगी।

 व्रत करने वाली महिलाओं के दिन की शुरुआत (Beginning of the day of women observing Karva Chauth fast)

इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं जल्दी उठती हैं, स्नान करती हैं और पवित्र कपड़े पहनती हैं। 

भारतीय रिवाज के अनुसार, ज्यादातर महिलाएं इस त्योहार के लिए साड़ी पहनने का आनंद लेती हैं।

ये दिन सभी सुहागन महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है।

इसलिए इस मौके पर महिलाएं अपने पति के लिए खूब सजती संबरति है।

सोलह श्रृंगार करती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती है ,हाथों में चूड़ियाँ पहनकर शुभ महूर्त पर पति की पूजा करती है।

सूर्योदय से पहले उठकर महिलाए सरगी का सेवन करती है सरगी में अनार, केला

और पपीते जैसे पौष्टिक फलों इत्यादि का सेवन करती है।

सरगी व्यंजन को खाने के बाद पूरा दिन महिलाए कुछ नहीं खाती है ।

आपको बतादें की इस व्रत में पानी का भी सेवन नहीं किया जाता है।

करवा चौथ व्रत की विधि  (Method of Karva Chauth fasting)

  • निर्जला व्रत पुरे दिन का होता है ।
  • शाम को मंदिर में भगवान गणेश, माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करें।
  • माता पार्वती को शहद युक्त वस्तुएँ दें।
  • फिर सच्चे मन से माता पार्वती का ध्यान करें।
  • सभी विवाहित महिलाओं को व्रत के बारे में सुनना चाहिए,
  • और शाम को चंद्रमा को देखने के बाद ही उन्हें अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करना चाहिए।
  • अपने जीवनसाथी, सास-बहू और बड़ों के आशीर्वाद से उसके बाद इस व्रत को समाप्त करें।
  • यह व्रत चंद्रमा से प्रार्थना करने के बाद पति के चरणों को सहलाने और रात के आकाश में चंद्रमा के प्रकट होने पर अपने पति के  हाथों से जलपान प्राप्त करने पर  तोड़ा जाता है।

ऐसे शुरू हुई थी करवा चौथ व्रत रखने की परंपरा  (This is how the tradition of keeping Karva Chauth fast started)

  1. ब्रह्मदेव ने दी थी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह (Brahmadev had advised the wives of the gods to observe the fast of Karva Chauth)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और राक्षसों के मध्‍य भयंकर युद्ध छिड़ा था।

पौराणिक कथा के अनुसार, देवता और दानव में एक बार खूनी संघर्ष (भयंकर युद्ध छिड़ा ) हुआ था।

अनगिनत प्रयासों के बावजूद, देवता विफल हो रहे थे, और अंततः राक्षसों की जीत हो रही थी।

 तब ब्रह्मदेव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ का व्रत करने की आज्ञा दी।

उन्होंने  दावा किया कि इस व्रत को रखने से उनके  पति राक्षसों की लड़ाई में जीत हासिल करेंगे ।

उसके बाद, सभी ने व्रत रखा और कार्तिक माह में चतुर्थी के दिन अपने जीवनसाथी की युद्ध में सफलता की कामना की।

कहा जाता है कि तभी से लोग करवा चौथ का व्रत रखते हैं।

देवी मां ने की थी इसकी शुरुआत  (Mother Goddess had started Karva Chauth)

कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने शक्ति की आड़ में शुरुआत में भोलेनाथ के लिए यह व्रत रखा था।

इस व्रत से उन्हें शाश्वत सुख की प्राप्ति हुई थी।

विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करने

और भगवान शिव और देवी पार्वती का सम्मान करने के लिए करवा चौथ पूजा करती हैं।

करवा चौथ व्रत का प्रसंग महाभारत काल में भी म‍िलता है (The context of Karva Chauth fasting is also found in the Mahabharata period)

करवा चौथ का त्यौहार की एक और कथा महाभारत काल से मिलती है।

जिसके अनुसार अर्जुन एक बार नीलगिरि पर्वत पर तपस्या करने गए थे।

उस काल में पांडवों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा।

तब द्रौपदी ने श्री कृष्ण से पूछा कि पांडवों को उनकी दुर्दशा से कैसे निकाला जाए।

इसके जवाब में कन्हैया ने उन्हें कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत करने का निर्देश दिया।

इसके बाद, द्रौपदी ने करवा चौथ  का उपवास किया और पांडवों को उनकी समस्याओं से मुक्ति मिली।

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