धनतेरस

भारत सरकार द्वारा धनतेरस पर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाएगा।

कहा जाता है कि धनतेरस शुभ मुहूर्त के दिन पर सोना, चांदी और बर्तन खरीदने से पूरे साल भाग्य का साथ मिलता है।

दिवाली के त्योहार की शुरुआत धनतेरस के उत्सव से होती है।

इसके बाद छोटी दिवाली, बड़ी दीवाली, गोवर्धन पूजा और अंत में भाई दूज आता है।

धनतेरस शुभ मुहूर्त के दिन, लोग भगवान धन्वंतरि, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा करते हैं।

लंबे समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार धनतेरस के दौरान आभूषण, चांदी के बर्तन और सोना खरीदना बेहद शुभ माना  जाता है ।

आइए अब इस बलॉग में जानें कि धनतेरस कब है औरधनतेरस का क्या मतलब है।

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धनतेरस का मतलब क्या होता है (What is the meaning of Dhanteras)

धनतेरस शब्द का अर्थ धन को तेरह गुणा बढ़ाना और उसमे वृद्धि करने वाला दिन।

इस दिन भगवान धन्वंतरि अपने साथ अमृत का कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे ।

भगवान धन्वंतरि का जन्म समुद्र मंथन में हुआ था।

हिंदू पौराणिक कथाओं में धनतेरस का अर्थ क्या है ?(What is the meaning of Dhanteras in Hindu mythology)

धनतेरस का अर्थ – हिंदू पौराणिक कथाओं में यह माना जाता है कि “यह उत्सव दिवाली से पहले कृष्ण पक्ष त्रयोशादी वाले दिन होता है।

यह त्यौहार धन समृद्धि का प्रतीक है, और तेरस तेरहवें दिन का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए इस त्यौहार का नाम धनतेरस है।

क्योंकि देवी लक्ष्मी,धन की देवी, समृद्धि, खुशी प्रदान करती है।

व्यापारियों के लिए इस दिन उनकी पूजा करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

 धनतेरस

धनतेरस के दौरान रसोई के उपकरण क्यों खरीदे जाते हैं? (Why are kitchen appliances bought during Dhanteras?)

भगवान धन्वंतरि इस दिन समुद्र मंथन से हाथ में अमृत से भरा कलश लेकर निकले थे।

इस अवसर पर बर्तन खरीदने का एक पौराणिक रिवाज है क्योंकि भगवान धन्वंतरि कलश लेकर आए थे।

धनिये के बीज, जिनकी पूजा भगवान लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा में की जाती है, इस दिन खरीदे जाते हैं और शुभ माने जाते हैं।

इन बीजों को दिवाली के बाद उनके बगीचों या खेतों में बोया जाता है।

ताकि परिवार में खुशियाँ और सुख समृद्धि बनी रहे।

धनतेरस का इतिहास (History of Dhanteras)

धनतेरस हमारे धार्मिक प्रथाओ से जुड़ा हुआ पर्व है।

इसका दूसरा नाम धन्वंतरि जयंती है।

यह उत्सव हमारे पूर्वजों द्वारा पीढ़ियों से मनाया जाता रहा है।

और आने वाले वर्षों में इसे हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाएगा।

हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक धनतेरस है।

धनतेरस के दौरान दीपावली के आने की घोषणा की जाती है।

दिवाली के कई सामानों की खरीदारी धनतेरस से पहले ही शुरू हो जाती है।

क्योंकि यह दीपावली से जुड़ी एक अनोखा पर्व है।

इसलिए दिवाली की शुरुआत और भी खुशनुमा हो जाती है।

द्रिकपंचांग के अनुसार इस दिन को “राष्ट्रीय आयुर्वेद जयंती” के रूप में मनाया जाता है।

धनतेरस क्यों मानते है ?(Why is Dhanteras celebrated?)

चिकित्सा के आविष्कारक और आयुर्वेद के संस्थापक भगवान धन्वंतरि को इस त्योहार के दौरान विशेष रूप से याद किया जाता है।

लोग इस दिन नए बर्तन खरीदते हैं, उनमें भोजन बनाते हैं और भगवान धन्वंतरि को भोग लगाते हैं।

धनतेरस ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से एक महत्वपूर्ण पर्व है।

भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा धनतेरस के इतिहास से जुड़ी हुई है। ईसा से 10,000 साल पहले भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था।

भगवान धन्वंतरि प्रारंभ से ही कुशल शल्य चिकित्सक थे।

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान धन्वंतरि का जन्म कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को हुआ था ।

वे अपने साथ अमृत से भरा हुआ कलश लेकर प्रकट हुए थे इस वजह से इस दिन को धनतेरस नाम से जाना जाता है।

2022 धनतेरस की पूजा का शुभ मुहूर्त (2022 Dhanteras auspicious time for worship)

22 अक्टूबर को धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त शाम सात बजे से शुरू होकर रात आठ बजे तक चलेगा।

इस दिन पूजा लगभग डेढ़ घंटे तक चलती है।

माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी की पूजा करने से संतोष, समृद्धि और खुशी मिलती है।

2022 में कब है धनतेरस?(When is Dhanteras in 2022?)

प्रदोष काल में त्रयोदशी तिथि को देवी लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है।

लक्ष्मी पूजा का शुभ दिन इस वर्ष 22 अक्टूबर को प्रदोष ऋतु के दौरान त्रयोदशी तिथि में मनाया जाएगा ।

इसलिए धनतेरस या धन त्रयोदशी एक पवित्र त्यौहार है।

इसे 22  अक्टूबर को मनाया जाएगा।

शनिवार, 22 अक्टूबर को शाम 6:02 बजे, हिंदू कैलेंडर कार्तिक महीने के दूसरे दिन कृष्ण त्रयोदशी की शुरुआत की घोषणा करता है।

यह धनतेरस शुभ मुहूर्त ।

जो 23 अक्टूबर की शाम 06.03.00 बजे तक जारी रहेगा।

इस वर्ष धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग है।

जो एक विशेष योग अभ्यास है।

कहा जाता है कि इस योग का परिणाम तीन गुना होता है।

त्रिपुष्कर योग धनतेरस के दिन दोपहर 1:50 बजे से शाम 6:02 बजे तक रहेगा।

धनतेरस के दिन इन बातों का ध्यान रखें। (Keep these things in mind on the day of Dhanteras)

  • धनतेरस के दिन किसी को उधार देने से बचें।
  • धनतेरस शुभ मुहूर्त का पता होना चाहिए
  • धनतेरस से पहले घर की सारी गंदगी दूर कर दें।
  • क्योंकि इस दिन गंदे घर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती है।
  • इसलिए धनतेरस के एक दिन पहले घर को पूरी तरह साफ कर लें।
  • कहा जाता है कि लक्ष्मी घर के मुख्य द्वार से प्रवेश करती हैं।
  • इसलिए भूल से भी यहां गंदगी या खराब चीजें न छोड़ें।
  • घर के मुख्य द्वार को साफ सुथरा रखें।
  • धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और कुबेर की पूजा करें।
  • ऐसा माना जाता है कि केवल कुबेर की पूजा करने से आप साल भर बीमार रह सकते हैं।
  • धनतेरस के दिन सोना, चांदी या कोई कीमती धातु खरीदना बेहद शुभ होता है।
  • धनतेरस के दिन किसी भी नकली मूर्ति की पूजा न करें हो सके तो मां लक्ष्मी की मिट्टी, सोने या चांदी की मूर्ति की पूजा करें।
  • इस दिन कांच के बर्तन न खरीदने की सलाह दी जाती है।
  • घर में किसी भी प्रकार का नकली चिन्ह न लायें।
  • स्वस्तिक बनाने के लिए शुभ सामग्री जैसे कुमकुम, हल्दी या चंदन का प्रयोग करें।
  • धनतेरस के दिन झाड़ू जरूर खरीदना चाहिए।

धनतेरस की उत्पत्ति की कथा (Story of origin of Dhanteras)

  1. धनतेरस को पौराणिक कथा (Mythology of Dhanteras)

एक बार यमदूतों से मृत्यु के देवता यमराज ने प्रश्न किया कि जब तुम मनुष्य के प्राण लेते हो तब तुमको कभी किसी मनुष्य पर तरस (दया ) आया है की नहीं।

यमदूतों ने प्रश्न का जबाब देते हुए कहा कि नहीं महाराज हम तो सिर्फ आपके दिए गए निर्देषों का पालन करते हैं।

फिर यमराज ने कहा कि बिना डर के बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी मानव  के प्राण लेने में दया आई है।

एक यमदूत ने तब कहा कि महाराज एक दिन ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय भी कांप उठा था।

एक दिन एक राजा जिसका नाम हंस था।

वो जंगल में शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था।  

रास्ता भटकते-भटकते अन्य राजा की क्षेत्र पर चला गया था।

उस क्षेत्र में हेमा नाम का राजा ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया था।

हेमा नाम के राजा ने पड़ोस के राजा का आदर-सत्कार किया था।

उसी दिन राजा की पत्नी के द्वारा एक पुत्र को जन्म भी दिया गया था ।

बालक की विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु हो जाएगी(The child will die only after four days of marriage)

ज्योतिषों ने ग्रह-नक्षत्र के बुनियाद पर बताया कि जब इस बालक का विवाह होगा तो उसके चार दिन के बाद इसकी मृत्यु होना निश्चित है (अर्थात बालक की विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु हो जाएगी)।

उस समय राजा बहुत परेशान हो गए थे और अंत में उन्होंने यह निर्णय लिया कि इस बालक को ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए। 

राजा ने आदेश दिया कि बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जायगा ।

और वहां तक किसी भी स्त्रियों की परछाईं भी नहीं पहुंच सकती।

उस गुफा में बालक की सुख सुविधा का भी पूरा ध्यान रखा गया था।

लेकिन विधि के विधान को तो कुछ और ही मंजूर था।

संयोग से राजा हंस की बेटी यमुना नदी के किनारे पर चली गई और उसने वहां राजा के बेटे को देखा और दोनों ने गंधर्व विवाह किया।

शादी के चार दिन बाद राजा के बेटे का निधन हो गया।

यमदूत ने तब महसूस किया कि नवविवाहिता की करुणामयी पीड़ा को सुनकर वह तड़प रहा था।

सब कुछ सुनने के बाद, यमराज ने टिप्पणी की कि यह तो विधि का ही विधान है।

 और हमें अपनी गरिमा में रहते हुए यह काम करना पड़ता है।

यमराज ने अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताया (Yamraj told the way to avoid premature death)

यमदूतो ने पूछा कि क्या अकाल मृत्यु को रोकना संभव है।

तब यमराज ने उत्तर दिया कि धनतेरस के दिन नियमानुसार दीपों की पूजा और दान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है।

इस घटना के परिणामस्वरूप, दीपों का दान किया जाता है।

 और धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

श्री हरि विष्णु के वामन अवतार का धनतेरस से संबंध (The relation of Vamana avatar of Shri Hari Vishnu with Dhanteras)

एक अन्य धनतेरस से संबंधित मान्यता यह है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि के डर से देवताओं को मुक्त करने और राजा बलि के बलिदान के लिए वामन का रूप लिया था।

इसके अतिरिक्त, शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को वामन के रूप में पहचाना

और राजा बलि को वामन के सभी अनुरोधों को ठुकराने की सलाह दी।

वामन ने कहा की मुझे केवल तीन पग भूमि ही चाहिए।

शुक्राचार्य ने बलि को दान देने के लिए मना किया

और कहा यह स्वय विष्णु भगवान है यह तीन पग में सारा संसार नाप देंगे।  

बलि ने शुक्राचार्य की सलाह की अवहेलना की।

और वामन को कहा की मैने आपको दान दे दिया,

तब वामन कहते है की ऐसे नहीं महाराज आपको संकल्प लेना होगा ।

बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य अपने सूक्ष्म वेश में वामन के कमंडल के पास पहुंचे।

इस प्रकार शुक्राचार्य वामन के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए।

अपने वामन अवतार में, भगवान विष्णु शुक्राचार्य के छल को समझने में सक्षम थे।

भगवान विष्णु को छल समझ आ गया

फिर विष्णु ने एक लकड़ी टोटी के अंदर डाली जिससे की शुक्राचार्य की आँख फुट गई ।

शुक्राचार्य जल्दी से कमंडल से बाहर निकल गए।

कमंडल से जल प्राप्त करके, बलि ने भगवान द्वारा अनुरोधित तीन कदम भूमि प्रदान करने की शपथ ली।

उसके बाद, भगवान वामन ने एक पैर से पूरी दुनिया को माप लिया और दूसरे से अंतरिक्ष को माप लिया ।

बली ने अपना सिर भगवान वामन के चरणों में झुकाया क्योंकि उनके पास तीसरा कदम उठाने के लिए कोई स्थान नहीं था।

उसने सब कुछ त्याग दिया, इस तरह बलि के भय से देवता मुक्त हो गये।

और बलि ने जो भी धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा ज्यादा धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई।

इस वजह से भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

धनवंतरी के संबंध में एक मान्यता (A belief in relation to Dhanvantari)

ऐसा दावा किया जाता है कि दिव्य अमृत को देवताओं और राक्षसों के बीच लौकिक संघर्ष से बाहर लाया गया था।

जब दोनों पक्ष देवताओं के चिकित्सक धन्वंतरि और विष्णु की अभिव्यक्ति द्वारा अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे।

परिणामस्वरूप, इसे धन्वंतरि नाम दिया गया, जो दिव्य चिकित्सक का दूसरा नाम है।

धनतेरस की तैयारी कैसे करे?(How to prepare for Dhanteras?)

लोग इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

वे त्योहार से कुछ दिन पहले रीति-रिवाजों के अनुसार अपने घरों को सावधानीपूर्वक साफ करते हैं,

और त्योहार के दिन, वे उन्हें दीयों, मोमबत्तियों, पेंट, फूलों और कई अन्य चीजों से सजाते हैं।

वे दरवाजे को रंगोली से सजाते हैं

और मुख्य दरवाजे के ठीक बाहर छोटे पैरों के स्टिकर इस उम्मीद में लगाते हैं कि देवी लक्ष्मी उनके निवास में प्रवेश करेंगी।

आपको धन की देवी को प्रसन्न करना चाहिए ताकि आपके परिवार में सुख शांति और स्मृद्धि बनी रहे। ।

धनतेरस पूजा की प्रक्रिया (The process of Dhanteras worship)

पूजा के लिए कलश, चावल, कुमकुम, नारियल और पान सहित कई तरह की चीजों की जरूरत होती है।

पूजा शुरू करने के लिए दीपक जलाना चाहिए और पूरी रात जलाना चाहिए।

प्रथागत अपेक्षा यह है कि भक्त भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मिट्टी, चांदी, या किसी अन्य प्रकार की धातु की मूर्तियों की पूजा करेंगे।

किसी भी प्लास्टर या कांच की मूर्तियों को खरीदने से बचें।

पूजा के दौरान परिवार के प्रत्येक सदस्य को बारी-बारी से बैठना चाहिए।

पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी के तीन अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है: महालक्ष्मी, महाकाली और सरस्वती

भगवान कुबेर और भगवान गणेश भी पूजनीय हैं।

क्योंकि उन्हें समृद्धि, शिक्षा, शांति और सद्भाव के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

प्रसाद के रूप में फल, मिठाई और सूखे मेवे का सेवन करना चाहिए।

मंदिर में ताजे फूल लगाएं, विशेष रूप से लाल गुलाब और कमल।

धूप, कपूर या अगरबत्ती जलाएं।

धनतेरस शुभ मुहूर्त में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आरती, घंटी बजाना और मंत्र जाप का करना चाहिए।

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By Vikas

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