हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास
प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव पट्टी में हुआ था।
शिक्षा (Education)
हरिवंश राय बच्चन जी ने अपनी शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल से शुरू की थी,
इसके बाद वे उर्दू सीखने के लिए कायस्त स्कूल चले गए।
1938 में इन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में MA किया
और 1952 तक वे इसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रहे.
इस दौरान वे देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गाँधी से भी जुड़े।
लेकिन थोड़े ही समय में उनको ये अहसास हुआ कि वे ज़िन्दगी में कुछ और करना चाहते है
और वे फिर बनारस यूनिवर्सिटी चले गए.
1952 में इंग्लिश लिटरेचर में PHD करने के लिए इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए।
इसके बाद वे अपने नाम के आगे श्रीवास्तव की जगह बच्चन लगाने लगे।
वे दुसरे भारतीय थे जिन्हें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त हुई थी।
वापस आकर वे फिर से यूनिवर्सिटी में पढ़ने लगे साथ ही साथ ऑल इंडिया रेडियो अलाहाबाद में काम करने लगे।
वैवाहिक जीवन (Married Life)
हरिवंश राय बच्चन जब बी.ए. प्रथम वर्ष में थे, उसी दौरान उनकी मुलाकात श्यामा बच्चन से हुई।
जिसके बाद दोनों के बीच प्रेम हो गया। प्रेम होने के बाद 1926 में दोनों ने सबकी रजामंदी के शादी कर ली।
शादी से पहले हरिवंश राय बच्चन की कई मशहूर कविताएं प्रसिद्ध हुई।
जिसके बाद उनके घर में लोग और दोस्त उनसे मिलने आने लगे।
तभी शादी होने के कुछ समय बाद उनकी पत्नी श्यामा बच्चन का अचानक ही निधन हो गया।
उनके इस दुनिया से जाने से हरिवंश राय बच्चन काफी अकेले और उदास रहने लगे।
उसके बाद वो अपने दोस्त प्रकाश के पास आए जहां उनकी मुलाकात मिस तेजी
सूरी से हुई यही से शुरूआत हुई उनकी दोबारा लव स्टोरी की।
24 जनवरी 1942 को हरिवंश राय बच्चन ने तेजी सूरी से शादी कर ली।
प्राप्त सम्मान एवम ख्याति (Received honor and fame)
1955 में हरिवंश राय जी Delhi चले गए और भारत सरकार ने उन्हें विदेश मंत्रालय में
हिंदी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त कर लिया।
1966 में इनका नाम राज्य सभा के लिए लिया गया था।
3 साल बाद भारत सरकार द्वारा इनको साहित्य अकादमी अवार्ड दिया गया।
1976 में हिंदी साहित्य में इनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
हरिवंश राय जी को सरस्वती सम्मान, नेहरु अवार्ड, लोटस अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।
हरिवंश राय जी ने शेक्सपियर की Macbeth and Othello को हिंदी में रूपांतरित किया
जिसके लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता है।
1984 में हरिवंश राय जी ने इंदिरा गाँधी की मौत के बाद अपनी आखिरी रचना “ 1 नवम्बर 1984 ” लिखी थी।
प्रेरणा (Inspiration)
‘बच्चन’ ने इस ‘हालावाद’ के द्वारा व्यक्ति जीवन की सारी नीरसताओं को स्वीकार किया ।
उसकी सारी बुराइयों और कमियों के बावज़ूद अपनाने की प्रेरणा दी।
उर्दू कवियों ने ‘वाइज़’ और ‘बज़ा’, मस्जिद और मज़हब, क़यामत
और उक़वा की परवाह न करके दुनिया-ए-रंगों-बू को निकटता से देखा ।
ख़्याम ने वर्तमान क्षण को जानने, मानने, अपनाने और भली प्रकार इस्तेमाल करने की सीख दी है
और ‘बच्चन’ के ‘हालावाद’ का जीवन-दर्शन भी यही है।
यह पलायनवाद नहीं है, क्योंकि इसमें वास्तविकता का अस्वीकरण नहीं है,
न उससे भागने की परिकल्पना है, प्रत्युत्त वास्तविकता की शुष्कता को अपनी मनस्तरंग
से सींचकर हरी-भरी बना देने की सशक्त प्रेरणा है।
यह सत्य है कि ‘बच्चन’ की इन कविताओं में रूमानियत और क़सक़ है,
पर हालावाद ग़म ग़लत करने का निमंत्रण है; ग़म से घबराकर ख़ुदकुशी करने का नहीं।
‘बच्चन’ की कविता इतनी सर्वग्राह्य और सर्वप्रिय है क्योंकि ‘बच्चन’ की लोकप्रियता
मात्र पाठकों के स्वीकरण पर ही आधारित नहीं थी।
जो कुछ मिला वह उन्हें अत्यन्त रुचिकर मानते थे ।
वे छायावाद के अतिशय सुकुमार्य और माधुर्य से,
उसकी अतीन्द्रिय और अति वैयक्तिक सूक्ष्मता से,
उसकी लक्षणात्मक अभिव्यंजना शैली से उकता गये थे।
उर्दू की गज़लों में चमक और लचक थी, दिल पर असर करने की ताक़त थी, वह सहजता और संवेदना थी.
मगर हिन्दी कविता जनमानस और जन रुचि से बहुत दूर थी।
‘बच्चन’ ने उस समय (1935 से 1940 ई. के व्यापक खिन्नता और अवसाद के युग में) मध्यवर्ग के विक्षुब्ध, वेदनाग्रस्त मन को वरदान दिया।
उन्होंने सीधी, सादी, जीवन्त भाषा और सर्वग्राह्य शैली में, छायावाद की लाक्षणिक वक्रता की जगह
संवेदनासिक्त अभिधा के माध्यम से, अपनी बात कहना आरम्भ किया ।
हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ (Poems of Harivansh Rai Bachchan)
तेरा हार। (1932)
मधुशाला। (1935)
मधुबाला। (1936)
मधुकलश। (1937)
निशा निमन्त्रण। (1938)
एकांत-संगीत। (1939)
आकुल अंतर। (1943)
सतरंगिनी। (1945)
हलाहल। (1946)
बंगाल का काल। (1946)
खादी के फूल। (1948)
सूत की माला। (1948)
मिलन यामिनी। (1950)
प्रणय पत्रिका। (1955)
धार के इधर उधर। (1957)
आरती और अंगारे। (1958)
बुद्ध और नाचघर। (1958)
त्रिभंगिमा। (1961)
चार खेमे चौंसठ खूंटे। (1962)
चिड़िया का घर।
सबसे पहले।
काला कौआ।
हरिवंश राय बच्चन की रचनाएँ (Works of Harivansh Rai Bachchan)
युग की उदासी।
आज मुझसे बोल बादल।
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी।
साथी सो ना कर कुछ बात।
तब रोक ना पाया मैं आंसू।
तुम गा दो मेरा गान अमर हो जाये।
आज तुम मेरे लिये हो।
मनुष्य की मूर्ति।
हम ऐसे आज़ाद।
उस पार न जाने क्या होगा।
रीढ़ की हड्डी।
हिंया नहीं कोऊ हमार!
एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलो।
जीवन का दिन बीत चुका था छाई थी जीवन की रात।
हो गयी मौन बुलबुले-हिंद।
गर्म लोहा।
टूटा हुआ इंसान।
मौन और शब्द।
शहीद की माँ।
क़दम बढाने वाले: कलम चलाने वाले।
एक नया अनुभव।
दो पीढियाँ।
क्यों जीता हूँ।
कौन मिलनातुर नहीं है?
है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
तीर पर कैसे रुकूँ मैं आज लहरों में निमंत्रण!
क्यों पैदा किया था?
हरिवंश राय बच्चन का निधन (Harivansh Rai Bachchan passes away)
हरिवंश राय बच्चन जी का निधन 18 जनवरी 2003 में 95 वर्ष की आयु में बम्बई में हो गया था।
उन्होंने 95 वर्ष के इस जीवन में पाठको एवम श्रोताओं को अपनी कृतियों के रूप में जो तौहफा दिया हैं वो सराहनीय हैं ।
म्रत्यु तो बस एक क्रिया हैं जो होना स्वाभाविक हैं
लेकिन हरिवंश राय बच्चन जी अपनी कृतियों के जरिये आज भी जीवित हैं
और हमेशा रहेंगे और हमेशा याद किये जायेंगे ।
इनकी रचनाओं ने इतिहास रचा और भारतीय काव्य को नयी दिशा दी
जिसके लिए सभी इनके आभारी हैं और गौरवान्वित भी है कि ऐसे महानुभाव ने भारत भूमि पर जन्म लिया ।
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